पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०८

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प्रस्फोट] १७० [द्वितीय खड। संदेश मिला, “१ जूनको गोरे अधिकारियोंके नेतृत्वमे एक पलटन -रवाना होगी"। इस आश्वासनसे एडवर्डस्को धीरज वधाया और १ जन को तो बरेलीके मार्गपर ऑखें बिछाये वह बैठा था! इतनेम एक सरकारी आदमी बदायूकी दिशासे दौडता हुआ दीख पडा। इधर आनेवाली' -सहायक सेनाका अग्रदूत समझकर एडवर्डस्ने उसे रोका और पूछताछ की। बात करनेके बदले उसने यह स्यापा सुनाया कि बरेलीसे अंग्रेजी राजही उठ गया है। बदायूमे सरकारी कोषकी सुरक्षाके लिए कुछ सैनिक थे। उनके । कमांडरसे एडवर्डसने पूछा " बरेली स्वतंत्र हो गया; अत्र बढाका क्या होगा?' उत्तर मिला, चिताका कोई कारण नहीं है उसके मातहत सभी सिपाही राजनिष्ठ है ! किन्तु शामकोही बदायूँमें बलवा शुरू हुआ । खजानेके रक्षक पुलीस और अन्य नागरिक नेताओंने ढोल पीटकर दिदोरा पीटा, " अंग्रेजी शासन समाप्त है।" इसतरह अपनी इच्छासे सारा जिला खान बहादुरखाके अधीन हो गया। खजाना बटोरकर मैनिक दिल्ली को चल पडे। बदायूके गोरे अफसर रातमे प्राण बचानेके लिए जगलकी ओर भागे। कई सप्ताह भूखों मरते, कभी किसानोंके बाडेमे तो कभी उजाड धरोम छिपते, अग्रेज कलेक्टर, मॅजिस्टेट तथा स्त्रीपुरुष अपने प्राण बचानेके लिए मारे मारे। "फिर रहे थे। उनमें से कुछ मारे गये, कुछ मरे और कुछ एक 'काले' आदमीकी शरण पाकर बच गये।। इस प्रकार एकही दिनमे सारा रुहेलखण्ड उठा! बरेली, शहाजहाँपुर, मुरादाबाट, बदायूँ तथा अन्य गाँवोमे सैनिक, पुलिस, तथा नागरिकोंने रमिलकर घोषणापत्र बनाकर कुछही घटोमे अग्रेजी शासनको गलवाही देकर निकाल दिया । अंग्रेजी शासनको पटककर उसकी जगह स्वदेशी "सिहासन रचे गये। ब्रिटिश झण्डोको उतार कर टुकडे टुकड़े कर दिया गया । न्यायालय, थानों तथा अन्य कार्यालयोंपर कातिध्वज चढाये गये। अब शासकका स्थान हिंदुस्थानने ले लिया था और अभियुक्तके कटघरेमे इंग्लैंडको खडा किया था। यह अनोखी क्राति सारे प्रातमें कुछ घंटोंम ही हुई ! और अचरजकी बात है कि स्वदेशी रक्तकी एक बूंद भी न "गिरी और रुहेलखण्ड स्वतत्र हो गया। बरेलीके तोपखानेके मुख्याधिकारी बख्तखाँके मातहत सब सैनिक