पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२१५

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अध्याय ७ वा] १७७ [काशी और प्रयाग सिलसिलेमें मद्रास फ्युजिलियर्सकी पलटनको लेकर जनरल नील इन्हीं दिनों बनारस पहुंच गया था। सहायताके लिए गोरी पलटन पहुँच जानेसे और विशेषतः नील जैसा धीर, समर्थ तथा करारा सेनापति उन पलटनोंको प्रास होनेसे बनारसके अंग्रेजोको धीरज बघाया। इसी समय दानापुरसे गोरी 'सेना बनारस आ पहुँची। जन कागीम असीम असतोष फैला हुआ था और कातिका प्रचार करनेमे सिपाहियोंके हाथ चॅटानेका प्रत्यक्ष प्रमाण अंग्रेजोंके हाथ लगा, तब उनका विचार हुआ कि क्रातिको उसके गर्भमे ही कुचल देना चाहिये । वे मानते थे कि नीलकी पलटनों, सिक्खो तथा तोपखानेकी सयुक्त चेष्टासे यह काम आसान होगा। आजमगढकी खबर ४ जूनको बनारस पहुंची, उसपर काफी बहस होनेके बाद बलवेके. पहलेही सिपाहियोंको नि:शस्त्र करनेका निर्णय पक्का हुआ। उसके अनुसार उसी दिन दो पहरको सामूहिक सचलन होनेकी आज्ञा जारी हुई। तुरन्त सिपाहियोको अपनी मौतका भान हुआ। उनको पहलेही पता लगा कि गोरोंने तोपखानेको खूब तय्यार रखा है। सचलनके मैदानमे अंग्रेज अधिकारियोने हथियार डाल देनेकी आजा दी तो उन्हें पूरा भान हुआ कि निःशस्त्र कर देनेपर उन्हें तोपोंसे उड़ा दिया जायगा। इसीसे हथियार डालनेके बदले उन्होंने शस्त्रागारपर हमला किया और भीषण रणगर्जनके साथ वे अफसरोंपर टूट पडे । तुरन्त इन सिपाहियोंको घबरानेके लिये सिक्खोकी एक कपनी आगे आयी। इस समय अंग्रेजोंके साथ राजनिष्ठ होनेका भाव प्रकट करनेका ज्वार सिक्खोंमे इतना बढ़ गया था कि कुछ समयके लिए क्यों न हो, क्रांतिकारियोंसे भिडनेका मौका देनेके लिए वे अंग्रेजोंसे प्रार्थना कर रहे थे। एक हिंदु सिपाहीने गाईस नामक कमाडरपर हमला कर उसको तत्काल धराशायी कर दिया। ब्रिगेडयर डॉशन् अपने स्थानपर पहुंचा नहीं कि एक सिक्ख सिपाहीने उसे गोलीसे उडा दिया नहीं। किन्तु उस महान अपराधको सहन न करनेसे अन्य सिक्ख सैनिकोंने उस सिक्खके टुकडे उड़ा दिये । अपनी राजनिष्ठाका अब अवश्य पारितोषिक मिलेगा इस आशासे राह देखनेवाले सब सिपाहियोंको तोपखानेने भुन डाला। हिदु और सिक्ख सैनिकोंमें पड़ी इस गडबडीसे १२