पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२१८

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'प्रस्फोट] १८० [द्वितीय खड • है। क्यों कि, प्रातकी प्रधान नगरी, काशी,अग्रेजोंके हाथ रही: फिरभी प्रतिभरमें क्रांतिके बवडरने सारा वातावरण व्याप्त कर दिया। जमीदार, किसान, सैनिक हर कोई अंग्रेजी शासनको गोमासके समान अपवित्र मानने लगा! छोटेसे गॉवको पता लग जाता कि कोई अंग्रेज गॉवकी सीमासे गुजर रहा है तो गॉववाले उसे पीटकर भगा देते हैं जब ४ जूनका बनारसका यत्न असफल हुआ और वहाँ गिरफ्तारीका दौरा शुरू हुआ तब एक महत्वपूर्ण बात पहले पहल खुल गयी + ऐसेही कुछ प्रसगोंसे कातिके सगठनका यत्र कैसे चाल किया जाता था इसकी पर्याप्त पहचान हो जाती है। काशीके करोडपति सर्राफ तथा तीन महान् आदोलक गिरफ्तार हुए। जब उनके घरोंकी तलाशी हुई तो साकेतिक भाषामें लिखे कुछ भयकर पत्र, जो क्राति केन्द्र कार्यालयसे आये थे, बरामद हुए । उनमेने एक पत्र, जो 'नेताका' लिखा हुआ था, यो था “ अब बनारसवालोंको एक साथ विद्रोह कर देना चाहिये । गबिन्स, लिंड तथा अन्य गोरोंको पहले मार डालो। इस काममें खर्च हो तो सर्राफ उसे पूरा कर देगा।" इस सर्राफ का घर जब जन्त किया गया तो वहाँ दो सौ तलवारे और कुछ बदूकें मिली। ___ यह है थोडेमे बनारसका वृत्तान्त । यहाँ मेरठ या दिल्लीक समान अग्रे ___* स २७ " सिपाहियोंके बलवेकी बढती अवस्थामे, गहरा और चारों ओर फैला हुआ द्वेष और तथाकथित अन्यायके प्रतिशोधका कभी शान्त । न होनेवाला भाव बढ़ता गया, यह बात स्पष्ट दीख पडती है। लूटखसोट की इच्छा तो उस द्वेष तथा प्रतिशोधके भावकी उपज थी, जिससे भिन्न भिन्न स्थानोंके अंग्रेजोंपर बडी बिपत्तियों आ गिरी। चार्लस्- बॉल कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड पृ. २४५ __ + स. २८ बनारसमें विद्रोह होनेकी बात जिलोंमे फैली नहीं कि सारा प्रात एक साथ उठा। आसपासके स्थानोसे यातायातके मार्ग तोड दिये गये, (तार तोडे गये, रेले उखाडी गयीं)। मालूम होता था कि सिपाहियोंसे जो काम पूरा न, हो सका, उसे सफल कर दिखानेकी चेष्टा जनता और जमींदार (मिलकर) कर रहे थे। "-रेडपम्फ्लेट प. ९१