पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२१९

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अध्याय ७ वॉ १८१ [काशी और प्रयाग जोंकी हत्या बिलकुल न हुई । प्रातभरम एकभी मेमको नहीं मारा गया। जनताके हृदयम धधकती राष्ट्रीय क्रोधकी ज्याला जब 'बदला, प्रतिशोध' की ध्वनिके साथ फट पडती तब भी अग्रेजोको गॉव बाहर कर, लोग सुजनतासे पेश आते: कभी कभी तो उनके गाडीम बैल या घोडे जोत देनेमे सहायता देते । यह चित्र देखो और अब आनेवाला वह चित्र भी देखो! हम इस की चाह नहीं करते कि स्वराज्यप्राप्तिके लिए बनारसके लोगोने जो जतन किये उससे अग्रेजोको सहानुभूति होनी चाहिये । किन्तु इस बातको हम जोर देकर बार बार बताएँगे कि बनारस प्रान्तम किये अंग्रेजोंके अत्या. चारोंका मडन किसी दशामें किया नहीं जा सकता । क्यो कि, सिपाही और जनताने जिस मात्राम कुछ किया और उससे भडक कर अग्रेजोंने जो भयकर अत्याचार किये इनमे किसी प्रकार का समपरिमाण मिलना असम्भव-सा है। कातिकारियोने-अर्थात् हिंदी जनताने जो 'र' काम किये उनके विषय में अत्यत नीच तथा झूठे अभियोग लगानम अग्रेजोंने कोई कमी न रहने दी। सभ्य तथा सुधरी हुई जाती की डींग हाकनेवाले एक अंग्रेज अफसरने बनारसके लोगोंसे किस तरहका वर्ताव किया इसका वर्णन देगे और ध्यान रहे, अंग्रेजोने स्वयं लिखे हुए सत्य बातोके सबूतके साथ देंगे तब उसकी आलोचना अनावश्यक होगी-व्यर्थ भी। ससार स्वयही उसका निर्णय करे। बनारसके विद्रोहके बाद आसपासके देहातोमे शान्ति रखनके लिए जनरल नीलने अग्रेजों और सिक्खोंको मिलाकर एक सेनाविभाग बनाया। इन सैनिकोकी टोलियाँ असहाय तथा निहत्थे देहातोंमें घुसती और जो मा मिले उसे या तो तलवारके घाट उतारा जाता; या फॉसीपर लटका दिया जाता। इन फॉसी जानेवाले अभागोंकी सख्या इतनी अधिक बढी, कि रातदिन चालू रहनेपर भी एक वधस्तभसे काम पूरा न होता था। तब फॉसीके स्तभोगी एक पातिही खडी कर दी गयी। इनपर से अधमरों ही को पटककर फेंक दिया जाता; फिरभी मरनेवालोकी संख्या घटतीही न थी। पड काटकर उससे वधस्तम बनानकी बेवकूफीकी कल्पनाको वेकार मान कर, अनजान पडोकोही वधस्तम बना डाला। अरे, हॉ. एक पेड़ में एकही आटमीको लटकाया जाय तो फिर करतारने पेडोंमें डालें क्यों कर पैदा