पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२२०

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प्रस्फोट] १८२ । [द्वितीय स्वड की १ तब डालडालको रस्सेसे गर्दने कसे हुए 'काले' आदमियोकी लाशें हर पेडमे लटकती दीख पड़ती थीं। यह सैनिक कर्तव्य तथा 'ईसाई शान्तिधर्मके प्रचारका कार्य' दिनरात चालूही रहता था; आश्चर्य नहीं, अग्रेज बहादरभी उससे तग आ गये ! इससे इस उदात्त और धार्मिक कर्तव्यके लिए आवश्यक गभीरताके साथ, कुछ मनोविनोटका सामान भी वाछनीय था ! किसी किसानको पकडकर उसे पेडम लटकाना तो अनाडी ढग है; उसमें कुछ कलात्मकता चाहिये । सो, लोगोको पहले हाथीपर चढाया जाता, फिर हाथियोको डालोंके नीचे खडाकर लोगोंकी गर्दनें डालोंसे कसकर बाधी जाती और फिर हाथीको भगाया जाता । * जब अनगिनत लाशें पेडके डाल डालमे बेढब लटकती रह जातीं; और इस एकही ढर्रेका दृश्य अग्रज राहियोको अच्छा न लगता था; वे ऊब जाते थे ! तब तरकीब सोची गयी कि 'नेटिवो' को खडे फॉसी देनेके बदले उनके गरीरकी कुछ चित्राकृतियाँ बनाकर लटकाया जाय । अंग्रेजी 8 और 9 की आकृतियाँ बनाकर पेडोंमे लटकाया जाने लगा!x (सं. २९) किन्तु स्थान स्थानपर होनेवाले इस हत्याकाण्डकी पर्वाह न करते हुए सैकडो हजारों 'काले' आदमी अब तक जीवित ही रहे । अत्र उतनोंको फॉसी चढानेके लिए रस्सी भी नहीं मिलेगी! अत्यत सभ्य और ईसामसीहके दया धर्मकी अनुयायी इग्लैंड इस अडचनके कारण बडी जिचमें पड़ गया! अहा! ईसाफी परम कृपासे इग्लैडको नयी सूझ प्राप्त हुई और इसका प्रथम प्रयोग इतना यशस्वी ठहरा, कि तबसे इस नूतन तथा वैज्ञानिक ढगको अपनाकर फॉसीके पुराने ढरको त्याज्य माना गया! इस नये आविष्कारने गॉवके

  • मिलिटरी नॅरेटिव्ह पृ. ६९

x फॉसी देनेवाली स्वयसेवक टोलिया जिलोंमे जाती, जहाँ शौकीन जल्लादोंकी कमी न होती थी। एक महाशय शेखी बघारते, थे, कि उन्होंने जितनोंको लटकाया ' सब कलात्मक ढगसे' था-आमके पेडको टिकटी और हाथीको पटरी बनाकर ! इस जगली न्यायके शिकारोंको, दिलबहलावके लिए, आठके अक (8) के आकारमें टांगा जाता" के अॅन्ड मॅलिसन कृत हिस्टरी ऑफ दि इडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. १७७