पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२२३

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अध्याय ७ वॉ] १८५ [काशी और प्रयाग दौडकर बडे प्रेमसे अग्रेज अफसरोको गले लगाया और दोनों गालोके बोसे लिये।* और उसी रातको ६वीं पलटनके सत्र सिपाही तलवारें उछालते और 'मारो फिरगीको' नारा लगाते बाहर आते हुए दीख पड़े। इधर क्रांतिकारी सैनिक इस लिए आकाश पाताल एक कर रहे थे, कि उनकी योजनाओका पता 'शत्रको लगकर बनारसके सैनिकोके समान उन्हें निःशस्त्र न होना पडे; उधर अग्रेज, सिक्ख सैनिको तथा रिसालेकी सरक्षा में अपने अपने परिवारोको किलेम पहुंचा रहे थे। ५ जूनको बनारस के समाचार इलाहाबाद पहुंचे। उस दिन नगरमे इतनी चहल पहल थी कि अग्रेजोने बनारसके मार्गमें पड़नेवाले पुलकर अपनी तोपे ताककर किलेके द्वार भी बद कर लिये थे। उस रातको सिपाहियोंने अंग्रेज अफसरोको क्रोड में छिपाकर बोसे लिए थे; वे जब भोजनके लिए मेसमें जमा हुए तत्र कुछ दूरीपर तुरहीकी डरावनी आवाजें आने लगी ! मानो यह सूचित किया जा रहा था, कि ६ वीं 'राजनिष्ट' पलटनही अब विद्रोह कर रही है। __ उस गामको, आज्ञा हुई कि बनारसके पुलपर रोकी हुई तोपोंको किलेके अदर ले जाया जाय । किन्तु अग्रेजोंकी हर आज्ञाको सिर ऑखोपर रखनेकी प्रथा आज एकाएक टूट-सी गयी दीख पडती थी। क्यों कि, सैनिकोने आना जारी की कि तोपे किलेमे नही, बाहर छावनीमें रखी जाये । गोरे अफसरोने सैनिकोको इस उद्धताईका दण्ड देनेकी अवधके रिसालेको आज्ञा दी। ले. अलक्साटर ओर ले. हारवर्ड इन दोनों नौजवानोंने रिसाला ठीक कर सैनिकोंपर हमला किया। इस समय पौ फट चुकी थी। इन बागी सिपाहियों के सामने पहुंचकर वे दोनो युवक अग्रेज आगे इस आशा पर धुस पडे, कि उनका इशारा पातेही रिसाला दौडकर जोरसे हमला करेगा और इन मुट्ठीभर सैनिकोका कचूमर निकालेगा। किन्तु • महान् आश्चर्य ! स्वदेश-वधुओंके विरुद्ध हथियार न उठानेके निश्चयसे, जैसे थे वहीं सवार डटे रहे ! बागियोंने उनकी प्रशसामें नारे लगाये। ले. अल ___* मिलिटरी नॅरेटिव्ह