पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२२५

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•अध्याय ७ वॉ] १८७ [काशी और प्रयाग wromoammar था। बलवेका निश्चित समय आ पहुँचनेपर सारा प्रयाग उठा । सचलन भूमिके भयानक नारोंसे सारा नगर गॅज रहा था। पहले गोरोके बगलोमें आग लगायी गयी। फिर सिपाहियो और नागरिकोने मिलकर जेलोको तोड दिया। उनमे बट पडे सैकडो वदियोंसे अधिक गोरोंके प्रति कट्टर द्वेष दूसरे किसी मानवम गायटही सुलगा होगा ! इससे मुक्त होतेही भीषण गर्जन करते हुए वे सबसे पहले गोरोके निवासोको चल पडे । तार और रेलपर क्रातिकारियोंकी तीव्र नजर रहती। रेलके कार्यालय, पटरियॉ, तारके खम्भे, तार, इंजन सब चकनाचूर कर दिये जाते। गोरोंने बहुत कुछ सावधानी रखनेपर भी कुछ गोरे जातिकारियोके हाथ लगे ही, जिनका तुरन्त सफाया कर दिया गया। उसके बाद शामत आयी उन करंटोंकीधर्मभ्रष्ट फिरंगियोंकी-जो अग्रेजोंके बूतेपर कूदते और हिंदी लोगोंसे अति उद्धताईसे पेश आते । क्रातिविरोधी देवाद्रोहियोंके घरोंपर हमला हुआ। केवल उनको जीवित रखा गया, जिन्होने 'दिल्लीके सम्राटसे राजनिष्ठ रहेंगे और अग्रेजोंसे लडेंगे' की सौगद ली। दिनाक १७ के सबेरे क्रांतिकारियोने लगभग ३० लाख रुपयोका खजाना हथिया लिया। और फिर दो पहर, नगरभरमे क्रांतिके झण्डे का जुलूस धूमा और पुलीस थानेपर उसे गाडा गया। इस तरह सारा नगर और किला दोनों क्रातिकी लपटोमे हॅक जानेके बाद नागरिको तथा सिपाहियोंने उस कातिध्वजकी सामूहिक बदना की। __ लगभग एकही समयमे समूचा इलाहाबाद प्रात एक प्राण होकर भडक उठा। हर स्थानम एकाएक इतना बदल हो गया था कि कुछ समय के बाद वहाँ अग्रेजी राज कभी था इस बातपर शायदही लोगों को विश्वास होता। हर गॉवमें चढा हुआ कातिब्बज लहरा रहा था; भूले भटके कोइ गोरा हाथ आता, तो देहाती उसे मार भगाते या जानसे मार डालते। क्या ही आश्चर्य है, कि पराधीनता की जडें कह सदियोंतक गहरी रुझानेकी चेष्टा करनेपर भी कितनी छिछली होती हैं ? हॉ, पराधीनताके अप्राकृतिक बीजमें जडें पैदा होना ही तो अचरज है। संसार, तुझे अबमी यह पाठ सीखनाही बाकी है ! इलाहाबाद प्रांत के सब तालुकदार मुसलमान थे और उनकी रियाया