पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ७ वॉ] [काशी और प्रयाग नीचे अपने हलोंको खेतोंमें छोड उनकी किसान रियाया स्वातन्य युद्ध में शामिल होनेके लिए बिजलीकी गतिसे दौड पडी। उन्होंने चालू अग्रेजी राजनीतिका पुराने स्वामियोंकी राजनीतिसे मिलानकर देखा, तब उन्हे निश्चय हुआ कि इस धोखेबाज फिरगी शासनसे अपने स्वराजका कारोबारही हजार गुना अच्छा था। जब सब घटनाएँ पराकाष्ठाको पहुँच गयी तब गत कई ढगकोके अकथनीय दुष्कर्मोका बदला लेनेकी सिद्धता करने लगे। हर स्थानमे स्वराजकी जय जोरोसे तथा आनदसे पुकारी जाती और नन्हे बच्चभी मार्गमे पराधीनता पर थूकने लगे ! यह अक्षर अक्षर सत्य है, कि १२-१४ सालके बालक क्रातिका झण्डा फहराकर मार्ग मार्गमे जुलूस निकालते । ऐसेही एक जुलूसपर हमलाकर अंग्रेजोंने उन बच्चोंको देहान्तका, दण्ड दिया। यह समाचार सुनकर एक अंग्रेज अफसर लजासे अपने अंदर बहुत गड गया, वह सेनापतिके पास पहुंचा; उसकी ऑखोंमें ऑसू छलक रहे थे; बालकोंको मुक्त करने उसने प्रार्थना की। हॉ, वह प्रार्थना किसी काम की न थी। जिन बालकोंने स्वातत्र्यध्वजको ऊँचा करनेका अपराध (!) किया था उन सबको सबके सामने फॉसीपर लटकाया गया ! देवदूतके समान निष्पाप बालकोंकी हत्या, कौन कह सकता है. करनेवालोके ही सिरपर फिर और जोरसे न आ गिरे ? सारा प्रांत क्रोधसे थर्रा गया । किसान, तालुकदार, बूढा, जवान, स्त्री, पुरुष सभी दासताकी शृखलाको तोड देनेको 'हर हर महादेव' के नारे लगाते हुए उठे । “ केवल गगापार नही, गगा और जमुनाके दोआबके सभी प्रातके देहाती उठे और ऐसा एकभी मानव, दोनों धर्मोमें, न बचा जो हमपर वार करना न चाहता हो।"* । भारतीय इतिहासमे इतनी उत्तेजक, वेगवती तथा सर्वव्यापी दूसरी क्राति मिलना सर्वथा असम्भव है। भारतीय इतिहासमें यह तो आजतक न बनी हुई घटना थी, कि स्वदेश और स्वातत्र्य के लिए जागरित जन शक्तिका उत्थान हुआ और जिस तरह गडगडानेवाले मेघोंसे जलधारा बह निकलती है, उसी तरह शत्रुके रक्तकी नदिया बहने लगी ! इससे बढ

  • के कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड २ पृ. १९५ ..