पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२२८

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प्रस्फोट] १९० [द्वितीय खड कर वह दृश्य अत्यंत उदात्त तथा स्फूर्तिप्रद था, कि अपने सच्चे कल्याणको पहचान, बधुभावसे प्रेरित हिंदू और मुसलमान कसे कधा मिलाकर लड रहे थे। इस प्रकार प्रचड और अनोखा वंडर पैदा करनेके बाद हिंदुस्थान उसे अपने काबूमें न रख सका, यह कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। अचरजकी बात हो तो वह है, इस प्रकार प्रलयकर प्रभंजनको भारत किस तरह पैदा कर सका ! ऐसे तो कोई भी राष्ट्र कातिके बहावको एकाएक नियत्रित नहीं कर पाया है। फ्रेंच राज्यक्रांतिसे यदि १८५७के विप्लवका मिलान किया जाय तो मालूम होगा कि अराजक, अत्याचार, गोलमाल, स्वार्थपरकता, तथा लूटखसोट आदि क्रातिकालमै अनिवार्य रूपसे होनेवाली बातें भारतमें फ्रान्स की अपेक्षा बहुत कम मात्रामें हुई । जमींदारोंका परपरागत आपसी वैर, राजनैतिक पराधीनताका आवश्यक परिणाम बीस विसवा दारिद्य, हिंदुमुसलमानोका सदियोंका पुराना द्वेषभाव और दूर करनेकी सभी चेष्टाओंके बावजूद बीचबीचमें उमडनेवाले अपसमझ (गलतफहमियों) इन सब बातोंके कारण क्रांतिका पहला प्रचड धमाका हो जानेके बाद अराजक (अनार्की) न होनेकी आशा पूरी न हो सकी ! उत्पत्तिके बाद तुरन्त जलप्रलय होता है; करतारभी इसे नहीं रोक सकता। कातिके सवारको जहाँ भी अडचन आय, उसका सामना करनेकी सिद्धता रखना अनिवार्य है। अस्तु । लूटखसोट और आगके दौरेका प्रथम सप्ताह समाप्त हुआ, तब अराजकका सकट और भय टल गया और इलाहाबादमें क्रांतिकार्यका रूप सुघ. टित-सा हो गया। जहाँ भी जनताके असतोषका विस्फोट होकर विप्लव होता है वहाँ पहले झटकेमे सुयोग्य नेता पाना दूभर होता है। किन्तु प्रयागमें यह अडचन तुरन्त दूर हो गयी। एक कट्टर स्वातंत्र्यप्रेमी सज्जन मौलवी लियाकत अली आगे आये और नेता बने। इनकी जानकरी हमे इतनीही मिलती है, कि ये जुलाहोंमें धर्मप्रचार करते थे और एक मदरसेमें पढाते थे। उनके पवित्र चरित्रके कारण लोग उनका बडा आदर करते थे। इलाहाबाद स्वतत्र हो जानेपर चोवीस परगनेके जमींदारों ने उन्हे इलाहाबादका मुखिया तथा सम्राटका प्रतिनिधि मानकर सम्मानित. किया। मौलवीने खुश्रूबागके सुरक्षित आहातेमें अपना डेरा डाला और वहाँसे समूचे प्रातके