पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३३

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अध्याय ७ वॉ] १९३ [काशी और प्रयाग जितनी चतुरतासे, सुदर आयोजन किया हो, अग्रेजोका दिल उससे बैठ जानेका कोई कारण नहीं था। क्यो कि, मद्रास, बम्बई, राजपूताना, नेपाल तथा अन्य प्रदेश अबभी प्रेतकी तरह ठढे थे और इस तरह इस राष्ट्रीय आदोलनके गलेमे अपने निकम्मेपनका भारी अडगोडा अटकाकर रुकावटें पैदा कर रहे थे! । सचमुच, अंग्रेजोंकी गुलामीके विरुद्ध विप्लव करनेके अपराधमे इन देशभक्तोको बहुत कुछ भुगतना पड रहा था । बनारस और इलाहाबाद प्रातोंमें नीलकी पैशाचिक क्रूरताने जो कुहराम मचाया था उसका सानी जगली जातियोंके इतिहासमै भी मिलना असम्भव है ! यह हमारा कथन अलकारिक भाषाका नमूना नहीं है; जो चाहे अपनी निश्चिति कर ले सकता है कि हम केवल सत्यही बता रहे है ! बनारसके अमानुष अत्याचारोंका विवरण हम दे चुके है। अब यहाँ एक बहादुर ब्रिटिशने, इलाहाबादके अपने कारनामोका जो वर्णन गर्वके साथ, किया है उस पत्रका उद्धरण यहाँ देते हैं:- हॉ, यह मुहीम तो मुझे बहुत पसंद आयी । जब सिक्ख सिपाहियोंके साथ फ्युजिलियर्स सैनिक नगरपर धावा बोलने गये तो हम बंदूकोंके साथ एक जहाजमें चढ़े। उसके चलते चलते हम दाएँ बाएँ किनारों पर गोलियों की बौछार करते जाते थे । जब हम खराब जगहमें आ गये तो हम गोलियाँ चलाते हुए किनारेपर उतरे। मेरी दोली बदूकके शिकार कई काले' आदमी (निगर्स) बन रहे थे; मै तो बदला लेनेको पागलसा हो गया था • न ? दाएँ बाएँ पासेपर न हम लोगोंने आग बरसायी तो पवनसे भडक उठीं ज्वालाएँ आकाशको चूमने लगीं। तब राजद्रोही दुष्टोंका पूरा बदला लिया जा रहा है, यह देख कर हम आनदसे बौखला गये । प्रतिदिन बागी देहा। तोंको जलानेके लिए हमारे दौरे निकलते तब हम पूरेपूर बदला लेते थे। जिन बदमाशोंने सरकार तथा अफसरोंके अपराध किये, उनकी तहकिकात के लिए जो समिति नियुक्त थी उसका मै प्रधान था। हर दिन हम आठ दस आदमियोको अवश्य फंसाते ! लोगोंके प्राण हमारे चगुलमे थे, मैं दावेसे कहता हूँ कि हमने किसी के साथ बरामी रियायत न की। पैरवीका १३