पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] १९४ [द्वितीय खंड ' काम तो मामूली था। दण्डित अपराधीको गले में फदा डालकर, एक गाडीपर खडा कर, पेडसे बाँध दिया जाता, गाडी को आगे धकेला कि वह लटक गया!" * नीलने न देखा बूडा; न अधेड, न जवान; न बालक, न बच्चा; अरे, मॉ के ऑचलमें दूध पीते नन्हे तकको जीवित न छोडा ! के महाशय ने स्पष्ट शब्दोंमें माना है कि इलाहाबाद प्रातमें कमसे कम छः हजार हिदी लोगोकों कत्ल किया गया। सैंकडो स्त्रियों, कोमल बालिकाओं, माताओं, लडकियों की गिनति भी न करते हुए उन्हें जीवित जला डाला! हम परमात्मा तथा सारी मानवजातिको स्मरण कर उपर्युक्त कथन लिख रहे है .और हम आव्हान करते हैं कि इसके विरुद्ध किसीके पास कोई प्रमाण हो तो परमात्मा और ससारके न्यायासनके सामने एक क्षण तो खडा रहनेका साहस करे! __और ये सब अत्याचार सचमुच किस अपराधके बदले किए गये? यही अपराध, कि सब लोक स्वदेशकी स्वाधीनताके लिए सब कुछ सहन करनेको सिद्ध थे! __ और कानपुरका हत्याकाण्ड ? किन्तु कहना चाहिये कि नीलके इस अमानुष पैशाचिक क्रूरताके परिणाम और प्रतिशोधस्वरूप वह हत्याकाण्ड था। __ समूचे क्रातिकालमें हिंदुस्थानभरमे जितनी अंग्रेज औरते और बच्चे मर गये, उनसे अधिक संख्यामें अकेले नीलने इलाहाबादके एकही नगरमे हत्याएँ कीं। और ऐसे कई नील, भारतभरमे सैकड़ों स्थानोपर ऐसे कई हत्याकाण्ड करते घूम रहे थे। एक अग्रेज जीवके बदलेमें पूरा देहात जला दिया जाता था। प्रभु ऐसे करतूतोंको कैसे भूल सकता है ? और हम ? इसे कभी नहीं भूलेंगे! __ और इन सत्र हत्याकाण्डोंके विषयमें अंग्रेज इतिहासकार क्या कहते हैं ? प्रायः ऐसी घटनाओं का जिक्र वे करतेही नहीं; और वह भी आडम्बरी ढगके साथ ! कहीं कभी विशेष विवरण दिया भी गया, तो वह नील की वीरताकी प्रशंसा करनेके हेतु । ठीक समयपर अपनायी इस क्रूरता (1)

  • चार्लस् बॉलस् इंडियन म्यूटिनी खण्ड १.