पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] । १९६ द्वितीय खंड wwwronmernannamrn mmmm हमें दृढ विश्वास है, कि उपर्युक्त उद्धरणोका मर्म जानकर तथा सच्चे प्रभुको-नीलके प्रभुको नहीं-स्मरण कर निष्पक्ष इतिहास, अंग्रेजोके किये इस आम तथा वेदर्द कत्लकी अपेक्षा, कातिकारियोंको करनी पडी कुछ थोडी हत्याओं को निःसदेह कुछ सहानुकम्पा तथा क्षमाशील दृष्टिसे देखेगा। स्वदेशके लिए की हुइ हत्याएँ न्यायपूर्ण होती है क्या ? " इस प्रश्नको परमात्मापर छोड़ देगे; मैंने जो भी किया, मुझे उसके लिए परमात्मा क्षमा करे: मैंने अपने राष्ट्रका हित करने के लिए ही सब कुछ किया।" ऐसे वाक्य नीलकी अपेक्षा नानासाहबके महमें हों तो अधिक शोभा देंगे। " स्वदेशके लिए लडने" का प्रण तो क्रातिकारियोंनेही किया था, नीलने नहीं। और हत्याएँ करनेसे जिन किन्हीने अपना कर्तव्य पूरा किया हो, वे थे स्वधर्म और स्वराजके लिए झूझने की आकाक्षासे पागल तथा अपनी मातृभूमिपर सौ सालोंतक होनेवाले लगातर जुलमोका प्रतिशोध लेनेको सचमुच तडपनेवाले कातिकारी, यह त्रिवार सत्य है। खैर; इस सादे ज्ञान का अब क्या उपयोग ? क्रूरता और वहशतका बीज नीलने इलाहाबादमें अच्छीतरह बो रखा था और उसकी अच्छी फसल अब कानपुरके खेतमे लहरा रही थी। तो फिर चलो फसली मौसममें वहॉकी शोभा देखने कानपुर चलें।