पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३७

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मार M अध्याय ८ वॉ कानपुर और झाँसी पराधीनताके अतल पातालमें सडनेवाले अपने पुरखाओंका उद्धार करनेके पवित्र ध्येयसे प्रेरित होकर, भारत उत्तरके प्रदेशमैं असीम बेगसे बहनेवाली क्रातिगगाके रक्तप्रवाहको कुछ समय ऑखकी ओट कर, 'हरद्वार की घटनाओकी आहटको सुनना आवश्यक है। मेरठ के बलबेके समय लखनऊके राजमहल में, या बरेलीके सूबे में या दिल्लीके दिवान-ई खासमे जितने कातिनेता जमा हुए हों, उनसे बढकर नेतागण उस समय नानासाहबके राजप्रासादमें जमा थे । १८५७ की कातिका बीज--धारण सबसे पहले ब्रह्मावर्तके राजप्रसादही में हुआ था । और वही क्रातिका गर्भपिंड बढकर उसे निश्चित आकार भी प्राप्त हुआ था ! और, सचमुच, बिठूरके इस राजप्रसादमें ही कातिबालकका जन्म होता, तो निःसदेह वह अल्पायु न होता। किन्तु गर्भके पुरे दिन भरनेके पहलेही मेरठके धडाके से कातिका अधकचरा बालकही दुर्भाग्यसे जन्म पाया । हो, फिरभी उसे अपने भाग्यपर न छोड़ा गया। उलटे, प्रतिकूल परिस्थितिमे मी उसे पालपोस कर पुष्ट करनेकी सिद्धता तथा जतन ब्रह्मावर्तमें किया जा रहा था। स्वातंत्र्यके प्रत्यक्ष देवदूतके समान फलनेवाले नानासाहबकी धीर वीर मूर्ति उच्चासनपर बिराजमान थी। पासही में अपने नेताकी महान् साधना की पूर्तिके लिए अपना जीवित, धन, स्वास्थ्यका होम करनेपर उतारू उनके भाई बालासाहब और मतीजे रावसाहब मी बैठे हुए थे। उनके पडोसमें