पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२३९

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। अव्याय ८ वॉ] '१९९ [कानपुर और झॉसी पिता ब्रह्मावर्तमे धर्मादाय विभागके प्रमुख थे। वहीके ओसारेमे नानासाहब, लक्ष्मीबाई तथा तात्या टोपे बचपनमे क्रीडा करते थे। नानासाहब और तात्या टोपे बचपनही से अभिन्न मित्र थे। बडे होनेपर जिन महान् प्रसगोंके वे प्रमुख वीर थे, उस वीर कार्यको पुष्ट करनेवाली शिक्षा प्रकृति की बचपनहीमे, देन थी। दोनोने एक साथ भारत रामायण पढा था। उन प्राचीन हिदु वीरोकी वीरगाथायें सुन उन कोमल दोनों बच्चोकी भुजाएँ एक साथ फडकती थीं। ऐसी पाठशालाएँ हर शतीमे खुलती नहीं, जहाँ नाना, तात्या; राव और लक्ष्मीके जैसे विद्यार्थि एक साथ पढते हो। और यहभी बात नहीं, कि ऐसे असाधारण बच्चे एकही समयमे समरागणपर अपने वीर चरित्रका लेखन करें, ऐसी लिखित परीक्षा भी प्रत्येक देशमें ली जाती हो! इस तरहके अद्वितीय विद्यालय तथा असाधारण कसौटियों का सम्मान और सौभाग्य उस समय केवल ब्रह्मावर्तके भाग्यमें बदा था। __ अप्रैलके अन्तमें नानासाहब तथा अजीमुल्ला, गुप्त सस्थाओके कार्यमे सगठनपरक एकता पैदा करनेके लिए, उत्तर भारतके प्रमुख नगरोंकी यात्रा कर आये थे। अब वे निश्चित महरतकी राह देख रहे थे। सहसा मई १५ को मेरठ के बलवे और उसके पश्चात दिल्लीके छुटकारेका समाचार कानपुरमे पहुंच गया । इस आकस्मिक बलवेके कारण ब्रह्मावर्तमे जरा भी गडबडी मचने के चिन्ह न दिखायी दिये । क्रांतिके यत्रमे अनगिनत कलपुर्जे होते है। उनमेंसे कुछ अत्यत वेगसे, तो कुछ अत्यत मद गतिसे, घूमते है। यह स्थिति प्राकृतिक है! कुछ पुर्जे निश्चित समयपर ही, तो कुछ सहसा घरघराहटके साथ चलेगे, यह भी निश्चित होता है। बिठूरवासी नेताओंने तुरन्त सारी स्थितिको भापकर मेरठ के विस्फोटसे योग्य लाभ उठाना तय किया। हाँ, किन्तु इसका तरीका क्या होगा? तुरन्त दिल्लीको चल दिया जाय, या जैसे कि पहले निश्चित हो चुका है, जून के प्रथम सप्ताहतक रुका जाय १ इन दोनोसे दूसरा तरीका ही अधिक पसद हुआ और अदर ही अंदर क्रातियंत्र घूमने लगा। ___ कई वर्षों तक कानपुर अग्रेजोंकी एक महत्त्वपूर्ण छावनी बन बैठी थी। वहाँ १ ली, ५३ वीं तथा ५८ वी हिंदी पैदल सैनिकोकी पलटने तथा