पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय ८ वे?] २०३ [कानपुर और झेबैसंट्वे

उन्होंने अपना डेरा डाला | अब कानपुरमं बलवा होगा तो खजाना लूटा जायगा यह तो स्पष्ट था; तो फिर उसकी रक्षा सर्वोत्तम पद्धतिसे कैसे हो ? हाँ, नानासाहबके सैनिकोपर इसका दयित्व क्यों न सौपा जाय? नानासाहबके दो सौ सिपाही खजानेकी रक्षाके लिए तैनात हुए ! कलेक्टर हिलसैडेनने नानासाहब तथा तात्या टोपेको वहुत धन्यवाद दिये; साथ यह भी तय हुआ कि बुरा समय आनेपर गोरे खीपुरुपोकौ नानासाहबके बिठूरके राजमहलमें आसरा दिया जाय । हाँ, यही थी राजनीति। अयेजोंके बुलवेपर अपनी सेना के साथ कान- पुरकी रक्षाके लिये नानासाहब चले जायँ और स्वाधीनताके लिये उठे अपने टेठात्घुबओंसे लडे | अंग्रेजोकी छावनी ही में डेरा डाले रहे । लाखो रुपयों- चाला खबाना अधिक सावधानीसे रक्षण करनेके हेतु अपने तावेमें ले और ऊषरसे अग्रेज उनकी इस सहायताके लिए उन को धन्यवाद दें । इसीमे राजनीतिक, अनोखा दाँव था । नानासाहबने चालको बढिया चालसे तोडा । शठं प्रति शाठथ-ठगके साथ महाठग बनो-के नायको नाना- चाहत्रने चरितार्थ किया और यह सब उस महान विस्फोटके पहले मात्र एक सप्ताह । इससे यह सिद्ध हो गया ' १८५७ में अग्रेज अघेरेमे टटोल रहे थे और उन्हींके बनाये करारेसे ही हडहडाकर वे गिर पडे' | स्वाधीनता ही एकमात्र ध्येय और सगस्त्र युद्धही उसका एकमात्र प्रभाव- पूर्ण साधन, उस समयकी जनताके अंतस्तलमे यह बात अच्छी तरह मिद गइ थी । किन्तु क्रातिके नेता, विद्रोहका दिनाक, प्रमुख केद्र, आदि सभी चतें इतनी गुप्त रखी गयी थी, कि अंग्रेज तो क्या, क्रातिसस्थाऔके मृर्दस्यभी इस विषयमें कखभी न जानते थे । केवल इस कार्यके सर्व प्रमुख और उनके विश्वासपात्र सहायकही इन बातोंको जानते थे ! हम पहले बता चुके है, कि हर पलटनमें एक गुप्त-समिति रहती थी; इसका मर्म अब पाठकोके ध्यानमे आ गया होगा ।'वनारसमें अंग्रेजोके हाथ जो पत्र लगा था उसके नीचे केवल इत्तनाहीं लिखा था-" ऐक बडे नेताकी औरसे" । ऊँचे दायित्वपूर्ण सब अधिकारी गुप्त कार्यके' योग्यही बरताव करते थे । बलबेके अगले दिन तक भी अंग्रेजोंकौ, बहादुरशाह, नाना- साहब थता लक्ष्मीबाईकी गतिविधिका, जरा भी सुराग न मिल सका था |