पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४४

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प्रस्फोट] २०४ [द्वितीय खड mami और ब्रह्मावर्तने तो असीम गुसताका पालन किया था। 'के' साहबका कथन है: "मराठी साम्राज्यका निर्माण करनेवाले श्री शिवाजीका इतिहास नानासाहबने यो ही नहीं पढा था।" __ क्रातिकारियो की बैठकका मुख्य साकेतिक स्थान था स्वेदार टिक्कासिग का घर । गुप्त सस्थाओंकी सभाका और एक स्थान था सिपाहियोंके नेता शमसुद्दीन खॉ का मकान | इन सभाओंमे नानासाहबके ब्रह्मावर्तके राजमहलसे दो प्रतिनिधि-ज्वालाप्रसाद और महम्मद अली उपस्थित रहते थे। सूवेदार टिक्कासिंग और ज्वालाप्रसाद दोनों शूर, स्वातन्य-प्रेमी तथा बड़ी लगनवाले देशभक्त होनेसे सभीपर उन्होंने अपनी छाप तुरन्त जमा ली और सारी सेना उनकी आज्ञा सिर आँखोंपर रखनेको शपथबद्ध हो गई। यह सकेत बन गया, कि टिक्कासिग का मतही सेनाके प्रत्येक व्यक्ति का मत हो । अब इन अगुआओसे नानासाहब का मशविरा होना आवश्यक था। पहलेही मेरठवाले बलवेने सब कार्यक्रम अस्तव्यस्त कर दिया था: जिससे और ही गडबडी मच गई थी। अब बदली परिस्थितिके अनुसार कार्यक्रममे बदल करना अनिवार्य होनेसे टिक्कासिंह और नानासाहबका साक्षात् निश्चित हुआ। * प्रथम भेटमे खूबही चर्चा हुई। सूवेदार टिक्कासिहने नानासाहबको जॅचा दिया कि स्वधर्म और स्वराज्यके लिए हिदु मुसलमान एक--मनसे उठनेको सिद्ध हैं और मात्र नानासाहब की आज्ञाकी राह देख रहे है। और कुछ नाजुक बातोपर विचार करनेके लिए इससे भी गुप्त तथा काफी समय चलनेवाली बैठकका निश्चय कर टिक्कासिंग चला गया। १ जूनकी सध्याको भाई बालासाहब तथा मत्री अजीमुल्लाखॉको लेकर नानासाहब गगामैय्याके पवित्र कूलपर आ पहुंचे। वहाँ टिक्कासिंग तथा गुप्त सस्थाओंके कुछ प्रमुख नेता उनकी प्रतीक्षा कर ही रहे थे। सब एक किश्तीमें, चढे। गगाकी परमपवित्र धारामे जानेपर हर एकने गगाजल हाथमै लिया और स्वदेश तथा स्वाधीनताके लिए लडे जानेवाले रक्तयुद्ध में कूद पड़नेकी शपथ ली। फिर दो घटोतक . * फॉरेस्टकृत 'स्टेट पेपर्स' तथा टेव्हेलियानकृत 'कानपुर'