पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२४६

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प्रस्फोट] २०६ [द्वितीय खंड शामको जब मसलमान सदा अनुसार मिलने, गले लगाने लगे: तब कही सर व्हीलरको कुछ शान्ति हुई ! विक्टोरिया महारानीकी वर्षगाठ उपलक्ष्यमें हमेशा तोपे दागी जाती थी, किन्तु सिपाही निगद जाएंगे यह मानकर इस वर्ष इसे मनाही कर दी गयी। महारानीकी वर्षगार हो और तोपे न दागी जायें ? यह सुनकर कुछ अंग्रेज अफसर बहुत सिट पिटाये, पर वेचारे क्या कर सकते थे ? यदि उस जगहपर ध्यान दिया जाय, जो अंगनोंने किलावदी कर अपनी सुरक्षाके लिए बनायी थी. जिसका जिक्र हम पहले कर चुके है, तो पता चलेगा, कि अग्रेजोंकी इतनी दुबली ढगा क्यों हुई थी। ईसाप की उस कहानीके अनुसार ( लोमडी और गडरियेका लडका ) कोई योंही यह गप उडाता कि 'सिपाही उठे' और गोरोके. झुडके झुंड सिरपर पाँव रखकर मार्गम दौडने लगते।' एक अंग्रेज अफसर लिखता है, “मैं जब वहाँ था तब देखा, कि वन्धियो, गाडियो, टोलियों आदि सवारियोकी धूम मच जाती और उनमेंमे लेखक, व्यापारी, औरत छातीसे लगे बच्चोंकी माताएँ, बच्च, आयाएं तथा अफसर आदि मबको 'वहाँ पहुँचाया जाता । मतलब, यदि बलवा कहीं हो जाता, या अब होता, तो हमसे और कोई हमारा अमिनदन करनेकी सम्भावना न थी। क्यो कि उपर्युक्त दृश्यसे हम भारतीयोको बता रहे थे कि हम कितने बुजटिल है और हमारी कितनी दयनीय दया है !" दम अफसरका कहना ठीक था; जनताने अंग्रेजोंकी कायरताका नगा रूप देख लिया था। जब वह किलाबंदीवाली गढी बनायी, तब क्या अर्जामुल्लान हंसते हसते एक लेफ्टनंटका मखौल नहीं उडाया था ? सदाकी मीठी भाषामें अजीमुल्लाने पछा “क्यो साहत्र, आपकी बनायी इस गढीका नाम क्या रखा है जी ?" लेफ्टनटन जवाब दिया " मैंने अब तक सोचा नहीं। “तिसपर वह चाणाक्ष अर्जामुल्ला ऑखे मटकाते, धीरेसे बोला, “ अजी साहब, इसका नाम 'फजी. हत-गढी' क्यों न रखा जाय ?" • एक दिन शामको एक नौजवान गोरेने शराबके नशेमे एक सिपाहीपर गोली चलायी। निशाना तो चूक गया; किन्तु सिपाहिने उस अपराधीके विरुद्ध फरियाद की। सदा की पद्धतिसे अपराधीको बेगुनाह साबित कर रिहा कर दिया गया ! कारण बताया गया, गोरा शराबके नशेमे था, जिससे