पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५०

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प्रस्फोट] २१० [ द्वितीय खड दिया,तब सिपाहियोंने भी एकस्वरसे कानपुर लोटनेका निश्र्च्य किया। तिन हजार सैनिकोंने नानासाहबको अपना राजा घोपित किया और उनके दर्शनका हठ ले बैठे। नानासाहब जब उनके सामने आ खडे हुए तब बडी उमगसे उनकी जयकी गर्जनाऍ की गयी और उन्हे राजसम्मानकी वदना (साँल्यूट) दी गयी। नेताजीका उसकी अनुमती से इस तरह चुनाव होनेपर, सिपाहियोंने मुख्य अधिकारियोका निर्वाचन शुरु किया। कानपुरके क्राति-सगठन-केंद्रके प्राणस्वरुप सूवेदार टिक्कासिगको रिसालेका प्रमुख चुना गया और उसे 'सेनापति' की उपाधी दी गयी। सैनिक अनुशा- सनके नये नियम बनाये गये। जमादार ढलगौजनसिग (५३ वीं पलटन) और सूवेदार गगादिनको (५६ वीं पलटन)कर्नल बनाया गया। फिर हाथीपरसे स्वत्रताके झ्ण्डेका प्रचड जुलूस निकाला गया और डकेकी चोटसे घोषित किया गया,कि अब नानासाहबका राज प्रारंभ हो गया है। 'निर्वाचन,नियुक्ति आदिका यह कार्यक्रम सपन्न होनेपर नानासाहबने एक क्षणभी व्यर्थ न जाने दिया! अंग्रेजोको जब पता चला, कि दिल्ली जानेके बदले सिपाहि वहि रहे है,तब वे अपनी सुरक्षित गढीको चल दिये और अपने तोपखानेको प्रस्तुत किया। औरते,बच्चे मिलकर लगभग एक हजार अंगरेज वहाँ थे। इस सुरक्षित गढीको हथीयाना सबसे पहले आवशयक था; उसीसे उसपर हमला करनेकी आज्ञा नानासाहबने दी। अंग्रेजोको विश्र्वास था कि क्रातिकारी उनपर हमला करनेकी हिम्मत नही करेंगे; किन्तु जून ६ को सवेरेही सर व्हीलरको एक खरीता मिला। नानासाहबके भेजे हुए इस पत्रका आशय यह था:-"हम अब चढ आ रहे है। आपको पहलेसे सूचित कर रहे है।" युद्ध्का यह निमत्रण था; सर व्हीलरने सब अधिकारियों, सैनिकों,तथा तोपखानेको प्रस्तुत कर युद्धकी आव्शयक सिद्ध्ता की।

  युद्ध प्रारंभ करनेके पूर्व,किसी तरहकी आव्शयकता न होने पर नाना-

साहबने अंग्रेजो को अग्रिम सुचना दी, इस बातका बडा महत्व है। नाना- साहबके स्थानपर अंग्रेज होते,तो निश्र्च्य,इस तरहकी उदारता कभी न दिखलायी जाती। जो कोई नानासाहबकी बदनामी करनेकी ओछी चेष्टा समय-असमय करते है उन्हे नानासाहबके ह्र्द्दयका यह प्राकतिक औदार्य