पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५४

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प्रस्फोट] २१४ [द्वितीय खड देते है:- "जब गेफर्डस्की औरत और बेटी मर गयी नय क्रांतिकारियोक पडावसे भेट जानकर कानपुरमें फूट डालनेका काम उठाया। देसी रसोइयाका भेष बनाकर वह चल पडा । कुछही अंत्र जाने नहीं पाया था, कि उसे पकडकर नानासाहबके सामने खडा किया गया। अंग्रेजोकी हालतके बारेमे जब उनसे पूछा गया तो उसने, जमा कि निश्चित था, झूठी और बे-सिरपरकी बातें कहकर उडने लगा । किन्तु जब उसे पता चला, कि उसके पहलेही दो औरतोको पकड लिया गया है, तब उसने सच्ची करुण कहानी कह सुनायी और वह गरमाया। उसे बंदी बनाया गया और १२ जुलायको न्यायासनके मामने खडावर नीन मालकी ऋडी सजा दी गयी ! इससे ज्ञात होगा कि लडाईके अंटाघटमे भी नानासाहब न्याय द्वेनेपर कितना ध्यान देने थे । जहाँ अंग्रेज गुप्तचरोकी इस तरह फजीहत होती, वहाँ कातिकारियोके जामम पूरी तरह सफलना पाते थे। एक बार एक भिन्ती अंग्रेजोंकी गढीके पास एक टीलेपर खडा होकर चिल्लाने लगा " में अंग्रेजीका हित है, इमसे जानपर खेल कर मैं तुम्हें एक खुशीको खबर मुनानेको खडा हूँ ! गोरी मेना. मय तोपखानेके, गगाके परले काठे आ खडी है। कलमे तुम्हारे छुटकारेका काम शुरू होगा ! इम बनायसे कमीन बागियोंकी कमर टूट गयी है, हम ' राजनिष्ठ' लोग अभीके अभी अंग्रेजोंको मिलने तैयार हैं।" यह सुनकर अग्रेजोने यह अदाजा लगाया कि, हो न हो,' उनके जासूसोंने शत्रुके पडावमें फूट डाली है और लखनऊवाली गोरी सेना उनकी सहायताके लिए आ पहुंची है। दूसरे दिन वही भिती आकर फिर चिल्लाने लगा, “अग्रेजोंकी जय हो ! गगाम बाद आनेसे गोरी सेनाको देरी हो गयी है; किन्तु अब कोई अडचन नहीं है; वे आ रहे है । सूरज, डूबनेके पहले हमारी सरकारकी विजय देखेगा!!" वह रात गयी, दूसग भी दिन वीता | आँखे विछाएँ अग्रेजोंको वह, सहायक सेना कहीं नजर न पडी, न वह भिती भी दीख पड़ा। अग्रेजीकी गढीके सभी समाचार अजीमुल्लाको ज्ञान हो जानेसे 'भिश्ती' को अपनी जान खतरेम डालनेकी आवश्यकता ही न रही। इस प्रकारकी कई धूर्त चालोंसे क्रातिकारी गुप्तचर अग्रेजोंको बरगलाते थे।