पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ८ वॉ] २१५ [कानपुर और ऑसी घेरा डालनेकी पूर्व सूचना अग्रेजोको ६ जूनको देनेके बाद नानासाहबने अपना डेरा रणभूमिपर टिक्कासिंगके डेरेके पास ही लगवाया। कानपुरके स्वतत्र होनेसे प्रातभरमें कातिकी भारी लहर उठी। हर दिन जमीदार और राजा महाराजा, अपने अपने अनुयाइयोके साथ आकर नानासाहबके पक्षमे शामिल हो जाते। अब उनकी सेना चार सहस्त्र हुई। उनमे, तोपची तो अपने काममे मॅजे हुए थे। इधर एक ओर कातिध्वज लहरा रहा था और उसकी रक्षाके लिए नन्हे नवाब दिन-रात अपने खेमेमे बैठे रहे थे। जब बलवा हुआ तब उनका घरबार जब्त करनेकी आजा हुई थी। किन्तु कुछ समझौता हुआ और स्वाधीनताके पवित्र युद्धमे उनका बहुत बोलबाला हुआ। नानासाहबके तोपची बूढे सेवानिवृत्त (पेन्शनर) सिपाही थे। गढीकी इमारतोंको जलानेकी चेष्टा क्रातिकारी कर रहे थे, तब एक नौजवान सैनिकने एक नूतन स्फोटकास्त्र का आविष्कार किया। उसका उपयोग सबसे पहले उन बारिकोंपर किया गया, जो अंग्रेजोंके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थी। प्रयोग अंत्यत सफल हुआ। बारिके तुरन्त भस्मसात् हुई। अग्निमालाओंको सुलगानेके लिए तरुण वीरोंकी सहायता करने में औरतों और बूढोमें होड-सी लगी। ऊँचे आदर्श और उत्तेजनाके इस प्रसगमै लोगोंमे कितनी स्फूर्ति पैदा हुई थी इसका अंदाजा केवल एकही उद्धरणसे लग सकता है:जब मुसलमानका भेष बनाकर मैं चटाई पर बैठा था तब मेरे सामनेसे, युद्ध में थके लोगोंको पानी पिलाने के लिए, लोग गुजरते थे । सहसा उनमेसे एक जन,मेरेपास आकर कहने लगा " अरे भाई, अपने देशबधु युद्धमें जुटे हुए हों और तुम ऐसे जवान यहाँ हाथपर हाथ धरे बैठे रहे ? सचमुच तुम्हें इसपर लज्जा आनी चाहिये ! चलो उठो, तोपखानेके काममें लग जाओ।" उसीने काने करीमअलीके वेटेकी, उस दिनकी, बहादुरीका बखान मेरे सामने किया। " उस लडकेने नया आविष्कार कर अंग्रेजोंकी इमारतें जला दी थीं और उस कामपर उसे एक शाल और नकद नब्वे रुपये पारितोषिकमें दिये गये थे।" स्वदेशकी सेवा न कर चुप बैठे रहना, उस समय, तरुणोंके समान युवतियोंको भी ओछापन लगता था; इसीसे परदोंको फेक कर कानपुरकी महिलाएँ रणमैदानकी और दौड पडी। किन्तु इन सब शूर युवक युवतियों को जिसकी लगन