पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५६

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प्रस्फोट] २१६ , [द्वितीय खड और उत्साहके आगे लज्जासे सिर झुकाना पडता था वैसी एक रूपसुदरी थी। और वह थी, पहले बताई हुई, नर्तकी अजीजान ! उसने वीरवेश चटाया था। नाजुक गुलाबी गालों और हसोड ओंठोंकी वह नर्तकी सशस्त्र, घोडेपर चढी, घूम रही थी और तोपखानेके सिपाही उसके दर्शनसे अपनी थकावटको भूल जाते । नानकचट अपनी दैनदिनीमे (डायरीमें) लिखता है, “ सशस्त्र अजीजान जा--जा लगातार बिजलीके समान कौध रही है। कई बार थके और घायाल सिपाहियोको मार्गमें मेवामिठाई तथा दूध देती हुई दीख पडती है।" इधर घमासान युद्ध ठन गया था फिरभी, नानासाहब, साथ साथ, अंतगत शासनपरक छोटी मोटी बातोंको अनुशासनमे बाधनेके विचारमे मगन रहते । वस्तुतः क्रांतिकी अटाधुधमें, लगान और पुलीस इन दो महकमोंको ठीकसे चलाना अत्यत कठिन कार्य था। तो भी नानासाहबने सबसे पहले न्याय और सरक्षणका लाभ जनताको मिलनेका प्रबंध किया। कानपुरके लब्धप्रतिष्ठ नागरिकोंको निमत्रित कर, उनसे श्री. हुलाससिगको बहुमतिसे चुनकर प्रधान न्यायाध्यक्ष नियुक्त किया और उसे आजा दी, कि उद्दड सिपाहियों तथा गुडे देहातियोंसे नागरिकोंकी रक्षा करे । सेनाको रसद पहुँचानेका काम मुल्ला नामक व्यक्तिको सौपा। दीवानी और फौजदारी मुकदमोंके लिए एक न्यायसभा नियुक्त हुई। ज्वालाप्रसाद और अजीमुल्लाने न्यायाध्यक्षका काम उठाया और बाबासाबहको उसका प्रधानपद दिया। इस न्यायसभाके जो सलेख आज प्राप्त है; उनसे यही मालम' होता है, कि जुलम तथा फसाद करनेवालोंको कासे कडी सजा दी जाती थी; सुप्रबध और शान्तिको स्थिर रखनेपर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता. था। एक बुरी चोरीके मामलेमें अपराधीका दाहिना हाथ काटा गया था। गौहत्या करनेवाले एक मुसलमानको मी वहीं दण्ड दिया था। बेकार गुडों तथा उचक्कोंको गधेपर चढाकर सडकसे घुमा, अपमानित कर, फिर दण्ड दिया जाता । फ्रेच राजक्रातिमें स्थापित सार्वजनिक सुरक्षा-समितिके समान, यह न्यायसमा अन्य विभागोंके कार्य भी

  • थॉमसनकृत 'कानपुर'