पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५७

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अध्याय ८ वॉ] २१७ [कानपुर और झॉसी पूरा करवाने में ध्यान देती। कमी होनेपर गोलाबारूद दिलवाना, सेनाको कपडे देना, अग्रेज गुप्तचरोंकी टोहमें रहकर उन्हे पकडवाना, गुडे, चोर मवालियोंको दण्ड देना आदि कई काम इस न्यायसभाद्वारा होते थे। भगोडे अग्रेजोंको पकडा टेनेवालोको पारितोषिक टेनेका काम भी किया जाता था! __ अग्रेजोंकी गढीपर १२ जूनको क्रातिकारियोने चढाई की। एक साथ चारों ओरसे हमला कर किलेपर दखल करनेकी अपेक्षा चारों ओरसे दिनरात तोपोंसे आग उगलते रहकर अग्रेजोंकी नाकों टम कर उनको शरण मॉगनेपर मजबूर करनाही क्रांतिकारियोंकी नीति थी। ऐसे तो बीचबीचमे हमले चढाये जाते ही थे, उसमें जब दोनो ओरके कुछ लोग खेत रहते तब चढाई रोकी जाती । तोपखानेकी तीव्रताकी बराबरी रिसाला या पैदल सेना न कर पायी। इस कमीका अनुभव आगे चलकर लखनऊ तथा दिल्लीके घेरोंमे होगा ही। किन्तु कानपुरके मुहासरेमे प्रत्यक्ष मुटभेडकी अपेक्षा तोपोंपर ही अधिक भरोसा था। इसका मतलब यह नहीं कि सिपाही मौतसे डरते थे। १८ जूनको गढीपर हुई चढाईमें सैनिकोंने जो पराक्रम प्रगट किया था वह निःसदेह भूषणरूप बना रहेगा। उस दिन शत्रुकी तोपोंके आग उगलते रहनेपर भी गत्रकी हरावलमे सैनिक तीरके समान घुस पडे और तटपर चढकर उन्होने शत्रुकी तोपोंपर दखलकर उनके मुह घुमा दिये; और कुछ समयके लिए ऐसा मालम होने लगा कि अब क्रातिध्वजको कभी हटना न पडेगा। किन्तु इसी समय इन सूरमाओकी सहायता करनेके बदले, योंही, जानबूझकर, सभी सेनाविभागामि गडबडी पैदा करनेका इरादा कछ दुष्टोंने किया था, और इसी कमजोरी के कारण सारी सेनाको पीछे हटना पडा। अवधके सूरमाओंके समान कानपुरके विशाल हृदयो, मस्तकों तथा भुजाओंने भी, दूसरे क्या करते हैं इसपर ध्यान न देते हए, अपना कर्तव्य वीरोंके समान निबाहा । एकबार चढाई करनेवाली टुकडी जब लौट रही थी तब एक सिपाही राहमें मरा सा पडा रहा। जब शूर, पराक्रमी और साहसी योद्धा होनेकी नामवरी पैदा किया हुआ कॅप्टन जैकिन्स वहाँसे निर्भीक गुजर रहा था तब उस सिपाहीने बाजके समान झपटकर उसकी गर्दनसे गोली पार कर दी और जेकिन्स की लाश धूल चाटने लगी।