पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५८

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प्रस्फोट] २१८ [द्वितीय खंड २३ जूनका सवेरा हुआ। उसी दिन ठीक सौ वर्ष पहले पलासीकी -रणभूमिपर अंग्रेजोंने भारतमें अपनी हुकूमतकी नीव डाली थी। २३ - जूनको अग्रेजोंका भाग्यसूर्य आकाशमध्यको जा रहा था। उसी दिन भारतमाताकी स्वाधीनताका राजमुकुट टूट पड़ा और उसने करुण पुकार मचायी। उस काले अशुभ दिनके अपमानके शल्यकी कसक बहुत गहरी धुसकर हिंदुस्थानके अंतस्तलको छेद रही है। ऐसा भासता है, कि आज सौ बर्षे वीतनेपर भी वह पापी काला दिन और उसकी अशुभ स्मृतियाँ हर भारतीयके मनमे हरे है। उस दिन पराधीनताके गहरे और भयानक घाव आज सौ वर्ष बीतनेपर भी रुझे नही । उन घावोंको रुझानेवाला कोई मरहम अबतक प्राप्त नहीं हुआ है ! अत्यंत शान्तिप्रेमी और क्षमाशील भारतके हृदयमे कितनी भीषण द्वेषभावना उबल रही है ? पलासीका प्रतिशोध लेनेकी भारतभूमिकी तडपन सौ वर्षोके बाद भी धीमी नही पड़ी है। मरनेवाली हर पीढीकी अन्तिम सॉसमें और पैदा होनेवाली प्रत्येक पीढीके प्रथम निश्वासमे पलासीके प्रतिशोधकी एक पूँक आजतक भारतमाता मिलाती रही है। सौ वर्षातक यह काम चलता रहा और अब २३ जूनका दिन आया तो, निदान, आज मातृभूमिकी पराधीनताका यूरा बदला लिया जानेका आगम ज्योतिषियोंने कथन किया। नानासाहब ! आगमका सच निकलना भलेही प्रभुके अधीन हो, अन्तिम साधनाकी दृष्टिसे तुम्हें अपना कर्तव्य निवाहना होगा। _ और २३ जूनके परबको साधनेके लिए नाना साहबके पडायमें उस दिन बडी खलबली मच गयी थी। सबकी सब टुकडियाँ आज असाधारण वीरताके साथ चढाई करनको सिद्ध दीख पड़ीं। तोपखाना, रिसाला. पैटल सेना सबके सब पलासीकी अतिहासिक स्मृतिसे उत्तेजित होकर रणमैदानम उतरे थे। हिंदू सूरमाओंने गगाजल तथा मुसलमानोंने कुराणको- सामने -रखकर सौगद ली 'आज हम सब मिलकर स्वाधीनता प्रास करेंगे या शत्रुओंको मारते मारते मरेगे।' रिसालेने अग्रेजी तोपोकी तमा न रखते हुए गढीके परकोटेतक चढाई की; अन्य दिशाओंसे पैदल सेना कपास लदे बोरोंकी आडमें, जिनको वे आगे धकेल रहे थे. गोलियोकी बौछारें शुरू रखीं। आसपासके देहाती भी अपने भाइयोकी सहायताके