पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२५९

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अध्याय ८ वॉ] २१९ - [कानपुर और झॉसी लिए इकठे हुए थे। गढीसे अंग्रेजभी अग्निवर्षा कर ही रहे थे। क्रातिकारियोके दवावको अंग्रेज रोक न सके, किन्तु गढीके अंदर न आने देनेमे वे सफल रहे । यथासमय रणोत्साह धीमा पड गया। पलासीका प्रतिशोध कुछ हिस्सेमे लिया गया। __किन्तु कानपुरकी अन्तिम चढाई व्यर्थ न हुई । उस दिनकी मुठभेडसे अंग्रेजोके दिल बैठ गये, जयकी आमा छोड दी । उनको अनुभव हुआ कि नानासाहबकी शक्तिके आगे गढीको सुरक्षित रखना असम्भव है। २३ जूनको न सही, २५ जून को अग्रेजोने गढीपर सफेद झण्डा लगा दिया । गरणके इस चिन्हको देखकर नानासाहबने लडाई स्थगित करनेकी आज्ञा दी और एक नदी औरतके हाथ सर व्हीलरको एक पत्र भेजा। इस पत्रका मतलब था, “ डलहौसीकी राजनीतिसे जिनका कोई सबध न हो और जो शस्त्रं डालकर गरणमे आनेको सिद्ध हो उन, महाराणी विक्टोरियाके प्रजाजनोंको इलाहाबाद पहुंचा दिया जायगा"। यह पत्र नानासाहबकी आजासे अजीमुल्लाखोंने लिखा था। पत्र पातेही उसपर अमल करनेका अधिकार जनरल व्हीलरने कॅप्टन मूर तथा व्हाइटिगको सौप दिया ! उसके अनुसार गरणागति की रीति निन्वित हुई । दूसरे दिन सबेरे केलाबदीके बाहर नानासाहबके प्रतिनिधि ज्वालाप्रसाद और अजीमुल्लासे अंग्रेजोकी ओरसे मूर, व्हाइटिग और रोच मिले । बातचीतका प्रारम अंग्रेजीमें हुआ, किन्तु ज्वालाप्रसाट और अजीमुल्लाने अग्रेजोको हिंदीमे बातचीत करनेपर मजबूर किया । सधिकी शर्ते ये रहीं, कि अंग्रेज अपनी तोपें, शस्त्रास्त्र, गोलाबारूद और खजाना नानासाहबको सौप दे और नानासाहब उन्हे इलाहाबादको पहुँचा देनेका प्रबंध करें। ये शर्ते एक कागजपर लिखकर अजीमुल्लाके साथ सब लोग नानासाहबके हस्ताक्षर कराने के लिए उनके पास पहुंचे। दोपहरमे, अंग्रेजोंको उसी रात या दूसरे दिन सवेरे रवाना करें इस विषयमें मतभेद हुआ।

  • रेड पम्पलेट तात्या टोपे अपने कथनमे कहते है:--अंग्रेज जनरलने शान्तिका झण्डा ऊंचा किया और लडाई बद हुई।