पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२६२

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प्रस्फोट] - २२२ [द्वितीय खंड बची लाखों पाये' कहकर आनट प्रकट किया । पुनर्जन्म होनेसे आनंद विभोर होकर गढी छोड़कर बेगसे वे चले। पर कहाँ ? सचमुच अब इस प्रश्नकी चर्चा इस स्थानमें करना व्यर्थ है। गगा तो अब मील डेढ मील दूर है। यह टोली पूरा अतर तय कर गंगाके वालमें पहुंची तब हारमें खडे सिपाहियोंने उन्हे घेर कर उनकी रक्षा की। हाथीसे या पालकीसे उतरकर नावोंमें चढानेके लिए आज किसीभी हिदी मानवने अग्रेजोंको सहारा न दिया! हॉ, कुछ अपवाद अवश्य हुआ। एक दो बार उतरनेमें थोडीसी सहायता दी गयी, किन्तु सिपाहियोंके हाथ नहीं, तलवारे आगे बढी थीं। घायल कर्नल एवर्टको डोलीमें रखा था। एक सिपाहीने डोली रोककर पछा" क्यों कर्नरसाब, यह परेड आपको कैसे पसद आयी? और यह वर्दी कैसी है ?" कहकर उसे डोलीसे नीचे पटककर टुकडे टुकडे कर दिये गये। उसकी औरत पासही थी। कुछ लोगोंने कहा 'तू स्त्री है. इससे तुझे जीवित रखा जाता है। किन्तु एक क्रूर तरुण भीड चीरते आगे घुसकर चिल्लाया 'हटो जी ; स्त्री है ? हॉ, नारी जाति है किन्तु है वह फिरंगी ! काट डालो उसे;" उसके शब्द समाप्त होनेके पहले ही वह ढेर हो गयी थी! __ अग्रेजी न्याय-समितिने स्वय मान्य किया है, कि जो नावें गगामें सज थीं उनमें विपुल अनाज आदि सामग्री भरी हुई थी! अंग्रेज पानीमें चलकर नावोंमें बैठे ! सब और सन्नाटा था। बहुतेरी नावें भर गयी थीं। मल्लाह डांडे थामे तैयार थे। तात्या टोपेने अपना हाथ हिलाया। नावोंको छोडने का वह इशारा था। सहसा, उस भीषण सन्नाटेको चीरकर एक ओरसे ब्यूगल बजनेकी ध्वनि आयी। उस तुरहीकी कर्कश आवाज सुनतेही तोपों, बंदूकों, तलवारो, संगीनों एव कूकरियोंकी खनखनाहट एक साथ सुनायी दी । मल्लाह नावोंसे तटपर भाग आये और सिपाही पानीमे कूद पडे। 'मारो फिरगीको' इसके बिना कोई आवाज न सुनायी देती थी। थोडेही समयमें नावोंमें आग लगायी गयी, जिससे औरतें, बच्चे, आदमी सब जलदीसे गगामें कूद पडे। कुछ तैरे, कुछ डूवे; कुछ जल मरे और कुछ तुरन्त या कुछ समयके बाद आयी बंदूककी वाढसे भुन गये। मासके टुकडे, कटे सिर, छटे बाल, कटे हाथ पैर और खूनके सोते !