पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२६४

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प्रस्फोट] २२४ [द्वितीय खड बनाना आसान हो गया है न ? नानासाहबकी आज्ञा पहुँचते ही हत्याकाण्ड 'एकदम बंद हो गया। और १२५ औरतों - बच्चोको पानीसे निकालकर किनारे लाया गया और बदी बनाकर सौदाकोठीमें भेज दिया गया। बचे अग्रेज पुरुषोंको एक पक्तिमे खडाकर उनको देहान्त दण्डकी आज्ञा पढ़कर सुनायी गयी। उनमेंसे एकने प्रार्थना-पोथीसे कुछ भाग अपने बॉधवोंको, सजा मिलनेके पहले, सुनानेकी अनुज्ञा मांगी और वह उसे दी मी गयी 1 प्रार्थना समाप्त होतेही सिपाहियोंने सबको कत्ल -कर डाला। ४० नावोंमेंसे एक नाव क्रांतिकारियोंके हाथसे छटक गयी थी; उससे केवल तीन चार अंग्रेज अचे और वह भी जमींदार दुर्विजयसिंहकी दयासे! उसने इन नगेधड़गे तथा मरणोन्मुख अंग्रेज पुरुषों को एक महीनामर रखकर फिर इलाहाबाद पहुंचा दिया। साराश, कानपुरमें ७ जूनको जीवित एक सहस्र अग्रेज स्त्रीपुरुषोसे केवल ४०० पुरुष और १२५ स्त्रिया-बच्चे जून ३० को बचे पाये गये । बच्चे और स्त्रियाँ नानासाहबकी बदिशालामें थे और चार अधमुवे अग्रेज दुर्विजयसिंगके महेमान थे। स्त्रियों बच्चों को जिस तरह नानासाहबने बदी बना रखा था उसका भी थोडेमे वर्णन देना चाहिए। ऐंसे तो इसकी आवश्यकता हम न मानते, किन्तु अग्रेज लेखकोने 'विश्वस्तसूत्रसे प्राप्त जानकारी' की पोथी पर पोथी रग डाली है। " स्त्रियोंपर अत्याचार हुए; आम सडकपर स्त्रियोंकी लाज लूटी गई; नानासाहबभी इसमें शामिल थे" ये निर्लजतापूर्ण । अभियोग उन्होने लगाये है, और ऐसे घृणित, अधम, सफेद झूठ कथनों पर विश्वास करनेको, अंग्रेजी राष्ट्रभी, अधा और नीच बना था, इससे हमें इसका विवरण मजबूरीसे देना पड रहा है। इस काण्डकी तहकिकात करने के लिए अंग्रेजोने ही एक विशेष समितिको नियुक्त किया था और उसीने निर्णय दिया था कि ( उपर्युक्त) 'ये सभी अभियोग सरासर झूठ है'.

  • के और मॅलेसनकृत इडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. २६३

x म्यूरकी रिपोर्ट तथा विलसनकी रिपोर्ट देखो; के और मॅलेसन कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ २०७