पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२६५

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अध्याय ८ वा २२५ कानपुर और PANJArmw किन्तु इससे क्या होता है ? नानासाहब ने हत्याकाण्ड से स्त्रियो को बचा कर नील , रेनाल्ड और हॅवलॉक की गर्दने लज्जासे झुका दी और ऊपर से १८५७ के भीपण प्रलय में जिन विश्वासघाती नीच शत्रुओ ने व्यक्ति , राष्ट्र और धर्म को मटियामेट कर डाला था उनके साथ नाना साहबने सौवा हिस्सा भी उग्रता या कुरता न दिखायी । समान परिस्थिति मे और जैसे ही उत्तेजना से स्वय इग्लडने हिदुस्थान, आस्टिया ने इटली, स्पेन ने मरो एव यूनान ने तुर्को के साथ इस से सौ गुना क्रूरता का बरताव किया था, यह अंग्रेजोंके लिखे इतिहाससे ही सिद्ध होता है ? कानपुर के हत्याकाण्ड के पहले झमले में कुछ सवारोने चार अंग्रेज लुगाइयो तथा कुछ इसाइ बनी औरतोंको भगाया था; किन्तु इस की खबर पाते ही नानासाहब ने उन सिपाहियोंको पकड मगवाया और उन्हें खूप फट, कारा। उन्हें कडी आजादी, कि भगायी औरतो को तुरन्त पेश करे | बदियो को बार बार रोटिया और गोदत दिया जाता + किसी काम के लिये उन्हें मजबूर न किया जाता, बच्चों को दूध पिलाया जाता। एक बेगम उन की निरीक्षिका श्री। कारागार में हैजा और अतिसार का प्रकोप हो जाने से शुद्ध वायुसेवन के लिए दिन में तीन बार घूमने दिया जाता x इसी स्थान पर एक किस्सा यहाँ दर्ज करना अयोग्य न होगा, कि अग्रेजोका केवल नाम लेनेसे लोग कितने भंडक उठते थे। एक सवेरे एक ब्राह्मणने बदीगृहके दिवारसे ऑककर देखा, कि जो अंग्रेज मेमें, बिना पालकीके, पग न धरती थी वे स्वय कपडे धो रही हैं । ब्राह्मणने कुछ दुखित होकर अपने साथीसे कहा, 'इनको कपड़े धोनेको एक धोबी क्यों नहीं

  • टेव्हेलियन कृत कानपुर पृ. २२९

+ नॅरेटिव्ह पृ. ११३ __x नील स्वय अपनी रिपोर्ट लिखता है:-" शुरूमे उनको (बदियोंको) ठीक खाना नहीं मिलता था; किन्तु बादमें उन्हें अच्छा खाना, साफ, कपडे और सेवाके लिए नौकर दिये गये।"