पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२६६

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प्रस्फोट] २२६ [द्वितीय खंड दिया जाता ?' मानवताके असीम प्रदर्शनको समयपर ही रोकनेके लिए साथीने एक तमाचा ब्राह्मणके मुंहपर जमाया ! इनीगिनी स्त्रिया कारागारमे चक्की पीसती और इसके लिए हर एकको एक रोटीका आटा मुफ्त दिया जाता। हाँ, इस तरह जीनेके लिए क्या क्या कष्ट उठाने पड़ते है इसका पाठही उन्हें मिल जाता! इस जेलका अन्त कब, कैसे और किस कारणले हुआ इसका वर्णन योग्य स्थानपर किया जायगा। इन स्त्रियों और बच्चोंको जेलमें छोडकर अब हम अन्य महत्त्वपूर्ण विषयको देखेगे। __ अंग्रेजी शासनके सभी मानचिन्होंको कानपुरसे उखाड फेकनेके बाद २८ जूनके गामको ५ बजे नानासाहबने एक बडा दरबार लगाया। इस राजसमाके उपलक्ष्यमें वहाँ उपस्थित सैनिकोंका एक स्नेहसम्मेलन भी रखा गया था। इस समारोहके लिए छः पैदल पल्टनें, रिसालेकी दो कंपनियों और स्वातंत्र्य-समरमें हाथ बॅटाने के लिए स्थानत्थानसे आये हुए क्रांति, कारियोंके, अपने अपने झण्डे लिये, स्वयसैनिक दल आदि उपस्थित थे। जिसके बूतेपर कानपुर जीता गया था, उस तोपखानेको उसके पराक्रमके योग्य सम्मानका स्थान जानबूझकर दिया गया था । बालासाहन पहलेसे सेनामें बडे सर्वप्रिय थे, जिससे उनके आते ही सैनिकोंने सम्मानपूर्वक जवगर्जना की । कार्यवाही का प्रारंभ होनेके पहले दिल्ली सम्राटके सम्मानमें १०१ तोपोंकी वदना की गयी। इससे स्पष्ट है, कि हिंदुमुसलमान पूरी तरह एक हो चुके थे। जब नानासाहब सैनिक-शिविरमें पधारे तब सैनिकोंने उनकी जयके नारोंसे आकाश गॅजा दिया और उनके सम्मानमें २१ तोपे दागी: २१ दिनोंके घेरेके स्मरणार्थ यह संख्या होनेका अनुमान लगाया जाता है। नानासाहबने अपने इस सम्मानके लिए सबको धन्यवाद दिये और कहा, “इस विजयमें सबका हिस्सा है: हर एकके समान जशका जोड ही यह विजय है।" फिर पारितोषिकके रूपमें एक लाख रुपये सैनिकोंमें बाटे जानेकी नानासाहबने घोषणा की। सचलनभूमिपर नानासाहब पधारे तत्र और एक बार २१ तोपोंकी वाढसे उनका सम्मान किया गया। फिर नानाके भतीजे रावसाहव तथा उनके भाई बालासाहब तथा बाबासाहबको १७ तोपोंका सम्मान दिया गया। ब्रिगेडियर ज्वालाप्रसाद और सेनापति तात्या टोपेको ११ तोपोंका सम्मान