पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२६७

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अध्याय ८ वॉ] २२७ [कानपुर और झॉसी मिला। इस तरह तोपोंकी गडगडाहट तथा स्वाधीनताके गीतोंकी गॅजको सुनते हुए सायकालमें सूर्य अस्ताचलकी ओटम विश्राम करने गये और सब सेना छावनीको लौट पडी। सैनिक सचलनका निरीक्षण करनेके बाद नानासाहब वालासाहबके साथ ब्रह्मावर्तके सुप्रसिद्ध तीर्थक्षेत्रको चल पडे । १ जुलैका दिन राज्याभिषेकके लिए निश्चित हुआ था। राजमहलकी शोभा देखतेही बनती थी। पेशवाका पुराना ऐतिहासिक सिंहासन समारोहके साथ सभाभवनमें रखा जानेपर, माथेपर मगल राजतिलक लगा, तोपोकी गडगडाहट और हजारों प्रजाजनोंकी जयध्वनिकी गर्जनामे जनताकी अनुमतिसे और धर्मके आशीर्वादयुक्त स्वतत्र, स्वकष्टार्जित, सिहासनपर नानासाहब बैठे। उस दिन कानपुरसे हजारों लोगोंने अनमोल बढिया उपहार भेंट किये थे ।* हिंदू जनता प्रकटरूपसे कह रही थी-उस दिनसे, मानो, राजा रामचद्रजी विजयी होकर फिरसे रामराज्यका प्रारंभ हो गया है। लम्बे समयके बाद फिर एकबार स्वधर्म और स्वराज्यकी सुगधसे वातावरण भर गया। मराठोंका जो सिहासन अंग्रेजोंने रायगढसे उठा दिया था वह फिर ब्रह्मावर्तमे अग्रेजोंके रक्तपर ही प्रस्थापित किया गया ! - स्मरण रहे, पाठकगण, दो साल पहले बिठूरके राजमहलके एक कमरेमें बोये हुए कातिके वीजका एक विशाल वृक्ष बनकर उसमे स्वाधीनताके फल भी लगने लगे थे। भला, इस समय नानासाहबके मनमे कौनसी भावनाएँ उछल रही होंगी? किन्तु अपना छिना राजमुकुट फिरसे खींच लाने के लिए नानासाहब इधर अपने प्रयत्नोंकी पराकाष्ठा कर रहे थे, तब अश्वारोहण तथा गजारोहणके समय स्पर्धा करनेवाली वह उनकी बालसखी भी चुप न थी। जब नानासाहबने कानपुरमे पेशवापदकी प्रकट घोषणा की, तब लक्ष्मीबाई भी अपनेको 'झॉसीकी महारानी' घोषित करनेमें थोडेही पिछडनेवाली थीं ? जब कानपुरके युद्धकी चौपडपर उसके भाईने स्वाधीनताका फॉसा फेका तब उसने

  • देव्हेलियन कृत कानपुर पृ. २९३