पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७०

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I अध्याय ९ वाँ अवध अवध प्रांतपर डलहौसीने दखल की और तबते यहाँको प्रजा दिनोदिन अधिक्ते अधिक कष्ट पानी गी। नवाके राजनें आमन्नी. नन्नान और अधिकारगले सभी पदापर गोरोंकी नियुक्ति हुई: देसी भाइयोंको बेकार बनाया गय। नत्रावकी लेना नोड ने गयी: उनले नदार गाल र दिये गये: नवाबळे नत्री तथा वेडे अधिकारियोंको उनने त्यानाने हार कुली-कवारोनी श्रेणिने ब्रिटाया गया। इनसे. जिन गरीनताके भग उनका स्वदेश वीराना हो गया और उन्हें ऐसी हीन दमा सात हुई, उम पराग दास्नाके बरेने ज्वलन्त द्वेष उनले मन्ने ओतप्रोत भर गया था । पराधीनताश यह गेडा नात्र राजधानी तथा राजनहलने - चारियोंपर ही पडा हो, सो त नहीं है। पीढ़ी दर पीके गान तथा जनींगरोंकी जागीरें भी अंग्रेजोंने हडर ली थी। तब इन राजाओ और जमीगरोंको पता चला कि सभ्यताके शिखरपर पहुँचे पराये दात्यकी अपेक्षा अच्छा त्रुरा, ऊबडखाबड स्वराज्य ही बहुत श्रेष्ठ, सम्मानित और सुखपूर्ण होता है। लगाननें वृद्धि होनेसे किसानोंमें अशान्ति मैल गयी। अंग्रेजी सेनाके बहुतेरे सैनिक अब्ध प्रांत भरती हुए थे। वे भी अपनं मातृभूमिको पराधीनता और उतनी हीन दशा देखकर, अंग्रेजोंपर खार खाते थे। नवाब वाजिदअलीशाहको जिन्होंने दुष्ट विश्वासघात तथा जमीनी ठगाजीले मठियानेट कर दिया था; उन अंग्रेजोशी याद आतेही हर व्यक्ति दाँत जिटकिटाकर तलवारपर हाथ रखता । कुलामिमान, शौर्य