पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७२

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mmam प्रस्फोट] २३२ [द्वितीय खंड wromrn morn.www. राजा और राज्यका वह धर्म था। अब धर्मकी अप्रतिष्ठा हो रही थी। येही असंतोषके कारण थे। और इसका इलाज अंग्रेजी हुकूमतका सुप्रबंध कभी नहीं था; अंग्रेजोंका आधिपत्य नष्ट करना ही उसका एकमात्र उपाय था। मानसिहके समान महापराक्रमी हिंदु नरेश तथा मौलवी अहमदगाह जैसे प्रभावी मुसलमान नेताने हिदुमुसलमानोंके धर्मके लिए अर्थात् स्वाधीनताके लिए लडे जानेवाले पवित्र युद्ध में अपने सर्वस्वकी बलि चढानेका निश्चय किया था। प्रकट या गुप्त रूपसे, सुविधानुसार, हजारों पंडित और मौलवी समूचे प्रातमें दौरा कर, इस पवित्र धर्मयुद्धका प्रचार करने लगे । सैनिक शपथबद्ध हुए; पुलिसने शपथ की; जमीदार प्रतिज्ञाबद्ध हुए। मतलब, सारी जनता अंग्रेजोंके विरुद्ध होनेवाले युद्धके पडयंत्रमे शामिल थी। और देशभरमें असतोषकी आग भडक उठी। मौलवी अहमदशाहको गिरफ्तदार कर राजद्रोह तथा जनताको बहकानेके अपराधम फॉसीकी सजा सुनायी गयी। किन्तु उसपर अमल करनाही असम्भव हो गया। ७ वी पलटनको निःशस्त्र किया गया। १२ मईको एक बडा दर. बार लगाकर सैनिकोको काबूमें रखनेकी सर हेन्री लॉरेन्सने चेष्टा की । उस दरबार में जनताकी भाषामें एक लम्बा भाषण दिया, जिसमें राजनिष्ठाके महत्त्वका बखान किया, रणजीतसिंहने मुसलमानोंके तथा औरंगजेबने हिदुओंके धर्मका कैसे अपमान किया और अंग्रेजोंने हिंदु-मुसलमान दोनोंको सहायता देकर इन अत्याचारोंसे कैसे बचाया. इसीका वर्णन रसभीनी भाषामे किया; फिर जो सैनिक अग्रेजोको वफादार रहे थे, उन्हे अपने हाथों तलवारों, शालो, पगडियों तथा अन्य वस्तुओंको भेटमें दिया। इधर ७ वीं पलटनके सैनिकोसे हथियार डलवाकर, पलटनहीको तोड दिया गया। किन्तु भावीके गर्भ में कैसी विचित्र घटनाएँ समाई थीं! थोडेही समय पहले वफादारीके कारण सम्मानित किया गया था, उन्हींको, क्रांतिकारियोसे सॉठ गॉठ करनेके अपराध, फॉसी लटकाया जानेवाला था। __ राजनिष्ठाका दरबार १२ मईको सपन्न हुआ; १३ मईको मेरठके अलवेका समाचार आया और १४ मईको दिल्लीपर क्रातिकारियोंने कब्जा जमा लेने तथा भारतके स्वाधीन होनेकी घोषणाका हर्षपूर्ण समाचार लोगोंने सुना!