पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७३

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अध्याय ९ वॉ] २३३ [अवध सुरक्षाकी दृष्टिसे, सर हेन्रोने लखनऊके पास माचीभवन और रेसिडेन्सी इन दो स्थानोंको चुना और वहाँ किलावठी करनेके काममें वह लग गया । अग्रेज औरतों और बच्चोंकों वहाँ ले जाया गया और अंग्रेज पुरुष, क्लर्क, मुलकी अधिकारी, व्यापारी, सभीको मैनिक अनुशासन, सामूहिक सचलन तथा राइफल चलानेकी शिक्षा दी गयी। मेरठमें भी बलवेके बाट सब नागरी गोरोंको उसी तरह सैनिक शिक्षा देकर दस दिनोंके अदर युद्धभूमिमें टिकनेके योग्य बना दिया गया था। सर लॉरेन्स अब प्रातका प्रधान सेनापति बना था! अवधसे नेपाल पास होनेसे सर हेन्रीने वहाँ एक शिष्टमडल भेजकर सहायताकी याचना की। सूचना यह थी, कि जंगबहादूर अपनी सेनाको अवध भेजे । इस तरह सत्र प्रकारसे सावधानी रखी जानेपर भी हरदिन सर हेन्रीको 'विश्वासयोग्य' सवाद मिलता, कि 'आज बलवा होगा, 'वह भी अपनी शक्तिभर इस 'प्रामाणिक' समावारके आधारपर, सतर्क रहता, दिन डूब जाता किन्तु बलवेका कोई चिन्ह न दीख पडता। कई बार इस तरह धोखा हुआ। ३० मईको भी एक अफसरने सर हेन्रीके कानमे डाला कि 'आज रातको ९ बजे अलवा होनेवाला है।' ___३० मई को सूरज डूब गया। अपने अधिकारियों के साथ खाना खानेमे सर लॉरेन्स जुटा हुआ था । नौ की तोप टगी । तब जिसने वह संवाद सुनाया था और इसके पहले भी एकबार जो झूठा साबित हुआ था, उसकी ओर झुककर सर हेन्री व्यग करते हुए बोला, क्यों जी; तुम्हारे मित्र समयके पक्के नहीं मालम देते। ___ "समयके पक्के नहीं " ये शन्न पूरे कहे न गये थे, तभी ७१ वीं पलटनकी बदूकोंकी बाढकी गडगडाहट सुनायी पड़ी। निश्चित निर्णयके अनुसार नौ की तोपके साथ इस पलटनके कुछ लोगोंने अग्रेजोंके जंगलोंपर धावा बोल दिया । ७१ वी पलटनके भोजनगृहमे आग लगा दी गयी और वहाँके । गोरोपर गोलियां चलाई गयीं। भगोडा ले. ग्रेट किसीकी सहायतासे एक गहीमें जा छिपा; किन्तु किसी दूसरेके बतानेपर वह पकडा गया; तब उसे घसीट लाकर कल किया गया। ले. हार्डिन्न अपने सवारों के साथ मार्गमें गरतपर धूम रहा था। उसे भी तलवारका एक बार लगा । छावनियोंमें आग