पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७५

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अध्याय ९ वा] २३५ [अवध ग्रेव्हको नर्कमें भेज दिया गया । ९ वी अस्थायी पैदल टुकडीने भी अपने प्रधान अधिकारियोंको मार डाला । सब सैनिक, जो भी मिले उस अंग्रेजपर टूट पडते और फिरगी राजका खात्मा के नारे लगाते। कमिशनर, उसकी पत्नी और वेटा नदीपार होनेकी धाधलीमे मारे गये। थॉर्नहिल उसकी लुगाईके साथ गोलीका शिकार हुआ । सिपाहियोने प्रतिगोधके आवेशमें लगभग २४ गोरोंको काट डाला । कुछ गोरे रामकोट, मितावाली के जमीटारोके पास भाग गये। वहाँ ८।१० महीनोंतक दावतें खिलाकर लखनऊको पहुंचा दिये गये | इसके बाद सीतापुरके सब सैनिक फर्रुखाबाद गये । वहाँके किलेमे अग्रेज भागकर आये थे। घमासान मुठभेडके बाद सिपाहियोने उमे जीत लिया और वहॉके सभी गोरोंको कत्ल कर डाला। नवाब तफुजर हुसेन खॉको फिरसे, अंग्रेजोंसे छिने सिहासनपर, बैठाया । उसने अपने सस्थानकी सीमामे मिलनेवाले हर अंग्रेजको खत्म कर डाला। इस तरह जुलाई १ तक फरुखाबाटके टापूमे अग्रेजोका नामलेवा एक भी न बचा । सीतापुरके उत्तर ४४ मीलो पर होनेवाले मालन गॉवके सिपाहियो तथा जनताने कुछ षडयत्र करनेकी भनक अग्रेजोंके कानमें पडी । सीतापुर के बलवेकी खबर पातेही, मालनके अंग्रेज अधिकारीभी घोडोंपर चढकर भाग गये, और पूरा जिला अंग्रेजी रक्तकी एक बूंद भी न गिराते हुए स्वतत्र हुआ। तीसरा जिला था महमदी । वहाँके गोरोने अपने बालबच्चोंको मिथौलीके राजाके पास भेज दिया था। राजाने साफ बताया कि 'प्रकटरूपसे रह सको तो जगलमे रहो।' क्यो कि, अवधके सभी सैनिकोंने बलवा करनेकी सौगध ली थी। निटान, गोरी स्त्रियोको राजासाहबके पास भेजकर महमदीके अग्रेज अधिकारियोंने किलेका आसरा लिया। उसी दिन रुहेलखण्डके शहाजहाँपुर को भागे हुए गोरोंने, महमदीमें हर क्षण प्राणोंका भय होनेसे, सीतापुरके अधिकारियोंको इन गोरोकी रक्षाका प्रबंध करनेको लिखा सीतापुर अबतक शान्त था; सो, महमदीके निराश्रितोंको लिवा लानेको कुछ गाडियोंके साथ सीतापुरके सिपाही रवाना हुए। किन्तु उनमे भी क्रातिका कीडा घुस चुका था। सभी गोरोको गाडियोंमें बिठाकर सीतापुरका रास्ता आधा तय किया; और सबको नीचे उतारकर उनका काम तमाम कर डाला। आठ औरते, चार बच्चे, आठ, लेफ्टनेंट, चार कॅप्टन और कुछ