पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२७७

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अध्याय ९ वॉ] २३७ [अवध -- उनकी सहायता की। फिर भी, उनमे से कुछ कातिकारियोंने काट डाले और कुछ जगलके कष्टोंसे मर गये। फैजाबाट अवधके पूर्वभागमें है। वहॉ गोल्डने कमिशनर था। कैनाबाद तहसीलम मुलतानपुर, सलोनी, और फैजाबाट प्रमुख केन्द्र थे। फैजाबाट म २२ वी पैदल पलटन, ६ वी अस्थायी पैटल पलटन, रिसाले तथा तोपखानके कुछ विभाग थे। इन सबका अधिपति कर्नल लेनॉक्स था । फेजाबाद जिलेमें अग्रेजोके अत्याचारोंने धूम मचायी थी। सर हेन्री लॉरेन्स स्वय लिखता है, " तालुकदारोंपर, मैं मानता हूँ, बडी सख्ती बरती गयी थी। मैं समझता हूँ, कुछ तालुकदारोके आधेसे अधिक गॉव छिन गये थे, जहॉ, कछ तो बिलकुल बरबाद हो गये।"* मेरठके बलवेके बाट तुरन्त अंग्रेज अधिकारियोंको डर लगने लगा, ये तालुकदार कहीं अब प्रतिशोध न लें | इस डरसे वे बहुत बेचैन होकर अपनी रक्षाके उपाय ढूँढने लगे । क्रातिकारियोंके सब मार्ग रोके रहनेपर वे अपने परिवार लखनऊ न भेज पाते थे; और फैजाबादकी सब सेना हिंदी होनेसे वहाँ भी प्रतिकारकी कोई योजना न बना सकते थे। इस जिचमे पडनेसे, निदान, अग्रेज अधिकारी राजा मानसिहकी शरणमे गये । राजासाहब अवधके हिदुओके माननीय मुखिया थे। नवाबके कार्यकालमे उनकी तलवार हिंदुधर्मकी रक्षाके लिए सदा सवारी रहती थी। १८५७ की मईम मालगुजरीके किसी झगडेमे मानी मानसिहको अग्रेजोने गिरफ्तार किया था। किन्तु मेरठवाले बलवेसे अग्रेजोकी सत्ता ढीली हो जानेके कारण, मानसिहको अपनी ओर कर प्रसन्न रखनेके लिए मुक्त कर दिया गया था। बडी हिचकिचाहट के बाद राजासाहबने औरतों और बच्चोंको अपने किले में आसरा देना स्वीकार किया: तब भी वे कुडकुडाते थे, कि लोग इतना भी पसद न करेंगे, उस बहाने किलेपर धावा बोल देनेसे भी बाज न आयेंगे ! किसी तरह, जून को अग्रेजी परिवार राजा मानसिंहके शहागजके किलेमे रखे गये। । * के और मॅलेसन कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड ३, पृ. २६६