पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] [द्वितीय खड स्वामित्वकी अर्थात् जनताके कामकी कोई वस्तु न ले जा सकेगे। फिर क्रांतिकारियोने स्वयं अग्रेजोके लिए नावे सजायीं; उन्हें कुछ नकट पैसा भी दिया और अंग्रेजोने सिपाहियोसे विदा ली और घाघरा नदी पार कर गये । ९ जूनको सवेरे एक घोषणापत्र प्रकाशित हुआ, जिसके अनु-सार कंपनीकी सत्ता समास होकर फैजाबाद स्वतत्र हो गया और वाजिद अलीशाहकी राजसत्ता फिरसे शुरू हुई। ___ अग्रेज जब नदीपार हो रहे थे, तब १७ वीं पलटनके सिपाहियोंने उन्हे देखा । इन्हे फैजाबादसे इस मतलबका पत्र मिला था, 'इधरसे आनेवाले अग्रेजोंको खत्म करो, ' जिससे उन्होंने किश्तियोंपर हमला किया। चीफ कमिशनर गोल्डने, ले. थॉमस, रिची, मिल, एडवर्डस्, करी आदि गोरे मारे गये। मोहदाबा जो भागे थे उन्हे पुलीसने मार डाला | केवल एक किरतीके लोग मल्लाहोंकी सहायतासे छटककर गोरोंकी छावनीतक पहुँच पाये। राजा मानसिंहके घरके लोग पहले ही अपने शरणमे आये अंग्रेज परिवारोंको सुरक्षित रखने में तंग आ गये थे. ऊपरसे और कुछ लोग पनाह मॉगने आये । मानसिग तब अयोध्याम था। उन्होंने अपने घरवालोंको लिखित सूचना दी थी. 'किसी भी दगाम अग्रेज पुरुषांको आसरा न दिया जाय; उनके परिवारवालोको भलेही रख लिया जाय और वह भी अपनी शर्तोंपर ! उनके पालनमे जरा भी आनाकानी होनका सदेह हो तो तुरन्त सबकी तलाशी ली जाय' इस प्रकारका इकरार क्रातिकारी तथा मानसिंहके बीच हुआ था तब उनके किलेसे अंग्रेज पुरुष घाघरापार जानेको निकले । मार्गम उन्हे बहुत कष्टो तथा अडचनोका सामना करना पड़ा। उनसे जो बच पाये वे गोपालपुरा पहुंचे। वहाँके राजाने गोरोंको २९ दिनतक अच्छीतरह मेहमान बनाया और सकुशल अग्रेजी अद्वेपर पहुँचा दिया। १८५७ के बवडरम जो अग्रेज बचे थे उन्होने अपने अनुभवोके ब्योरेवार और लम्बे चौडे वर्णन लिख रखे है । इनसे हम बहुत कुछ सीख सकते है; भारतके लोगोकी उदात्त मनोगतिके ये परिचायक, जीवीत स्मारक है। अवधमें अग्रेजोके विषयमे असीम द्वेषभावना भडकी थी, फिरभी क्रातिकारियोंकी सहायता करनेवाले राजा महाराजाओकी शरणमे जो अंग्रेज गये उन्हे आसरा देकर उनका अच्छा आतिथ्य किया गया ।