पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८३

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अध्याय ९ वॉ] २४१ [अवध और ऐसे उदाहरण कुछ कम नहीं है । बुगर लिखता है:-अन्तम, मैं अकेला बचा। भागते भागते रास्ते में एक देहात मिला । पहले आदमीसे भेट हुई वह ब्राह्मण था; उसमे मैने पीनेको पानी मांगा, मेरी बुरी दया देखकर उसे दया आयी, उसने बताया कि उम देहातमे ब्राहाण अधिक है तब मेरे लिए कोई भय नहीं...वलीमिग मरा पीछा करते वहाँ पहचा। तत्र में भाग कर एक गली में घुसाः एक बुढियाने मेरे पास आकर एक झोपडेमे घुसने का इशारा किया और घासमे जा छिपा । थोडेही समयमे बलीसिंग और उनके साथी वहाँ आये और अपनी तलवागेकी नोकोंसे हर स्थानमे । घोपकर देखने लगे। उन्होंने जल्दही मुझे खोज निकाला और बालोको पकडकर घसीटते बाहर खीचा । तब देहात के लोग इकटा हुए और फिरगियोको अनगिनत गालियों देने लगे । फिर देहातियोके कोलाहलमै बलीसिग मुझे दूसरी जगह ले गया। मेरे मरणका दिन हरगेज आगे बढ़ाया ' जाता । में पाव पडकर दयाकी याचना करता जाता। निठान, बलीसिंग मुझे अपने घर ले गया और अन्तम मुझे हमारी छावनीम पहुंचाया गया। कल लेनॉक्स कहता है:- हम भाग रहे थे तब नजीम हुसेनखाँक लोगोने हम पकडा । उनमेसे एक ने चक्र (रिवालवर ) तान कर, दात पीसकर, 'कहा कि फिरगीको गोलीसे उडा देनेको उसके हाथमे कमकमहाट हो रही है। उसने कहा, किन्तु उससे ऐसा कोई काम न हुआ। फिर हमे नजीमके सामने खडा किया गया। वह दरबारम एक गावतकियासे टेक लगा. कर पड़ा था। उसने हम शरबत पिलाया और निर्भय रहो कहकर धीरज धाया । हमे कहाँ टिकाया जाय इसपर विचार हो रहा था तब एक क्रोध भरे नौकरने घोडोंके अस्तबल सूचित किये, तो नवाचने उसे फटकारा । किन्तु दूसरा आगे होकर बोला, इसमे इतना सोचनेकी क्या पडी है ? इन सत्र फिरगी कुत्तोंको मै अभी खत्म किये देता है, बस ! नजीमने सबको डाटा, और हमे प्राणदान देने का आश्वासन दुहराया । क्रातिकारियोके डरस हम जनानखानेके पासही छिपे रहे थे। हमे कपडे, खाना सब कुछ ठीक मिलता।" इसके बाद एक दिन नजीवने उन्हें हिंदी वेश पहनाकर । अग्रेजोंकी छावनीमे पहुंचा दिया।