पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८४

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प्रस्फोट] २४२ [द्वितीय खंड फैजाबादसे अग्रेज अफसरोंके भाग जानेके समाचार मिलतेही अवधके अन्य तहसील भी स्वतत्र हुए और स्वाधीनताका झण्डा फहराया गया। उसी दिन अर्थात् ९ जूनको सुलतानपुर उठा, दूसरे दिन सलोनीमें बलवा हुआ, तब वहॉके अधिकारी जानकी खैर मनाने तितर बितर भागे । उनमेंसे कुछ सरदार रुस्तुमशाह तथा कुछ राजा हनूमतसिंहको शरणमें गये । अवधके वीर तथा उदार राजा शरणमें आये हुओंको केवल प्राणदानही नहीं देते थे; वरच इन अग्रेजोंकी अच्छी तरह खातिर करते थे ! वास्तवमें इन सभी जमींदारोंको अंग्रेजोने बहुत अपमानित और बरबाद किया था। हाँ, वे कभी न भूले, कि उनका धर्म ठुकराया गया और उनके स्वराज्यका सत्यानाश कर दिया गया था। अपने सिपाहियोको लेकर वे स्वातत्र्य-समरमें हाथ बॅटाते थे। और इनमेंसे कुछ तो यह प्रण कर चुके थे, कि अग्रेजोंको भारतसे निकाल बाहर करेंगे तब कहीं आराम करेंगे। और इस चीरतायुक्त देशभक्ति और स्वाधीनताके प्रेमके साथ साथ मनकी महानता भी उनके पास थी। बहुसंख्य जनता जब बदले तथा तेहेके जोगमें अग्रेजोंको गाजरमूलीकी तरह काट रही थी, तब अग्रेजी परिवारोंपर दया कर, उनका आतिथ्य तथा सरक्षण ही नहीं किया गया, वरंच जिन अधिकारियोंने बहुत सताया था उन्हे भी, शरण आनेपर, प्राणदान दिया। जनताने बारबार प्रार्थना की, कि 'इन अधिकारियोंको जीवित रखने में अपनी भलाई नहीं है, क्यो कि, ये फिरसे लडाईकी सिद्धता करेंगे और १८५७के उत्तरार्धमें ठीक वही हुआ भीतो भी जमींदारोंने उनके साथ उदारतासे ही बरताव किया । इस तरहकी उदारता तथा दानाई, जनताके क्रोधका कारण होनेपरभी, बरती जानेका उदाहरण भारतको छोड किस राष्ट्रमें, और वह भी विप्लवके विस्फोटमें, पाया जायगा? कालाके जमींदार राजा हनुमतसिंग राष्ट्रसेवाके लिए लडनेकी लगनमें रंचभी किसीसे कम न होनेपर भी, केवल उनकी महान् उदारताने शत्रुको वों कहनेपर मजबूर किया:--" ब्रिटिशोंने मालगुजारीकी नयी पद्धति शुरू की, जिससे इस राजपूत सूरमाकी आमदानीका बहुत बड़ा हिस्सा छिना गया था। इस जुल्म तथा अपमानका शल्ल मद्यपि उनके भंतस्तलमें