पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८५

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अध्याय ९ वॉ] २४३ [अवध गहरा घाव कर चुका था, तो भी जिस राष्ट्रने उसे लगभग बरबाद किया था, उस राष्ट्रके शरणार्थी अधिकारियोको, केवल विपत्तिमे फंसे लाचार जीव की उदार दृष्टि के बिना, अन्य किसी भी दृष्टिकोणसे देखनेको उनका महान् मन न मानता था ! उस सकट-समयमें उन अग्रेजोंकी सहायता भी की और उन्हे उनके सुरक्षित स्थान तक भी पहुंचा दिया। किन्तु बिदाईके समय कॅप्टन बरोने बगावतको दबानेमे राजासाहबकी सहायताकी इच्छा प्रकट की, तब वे तडाकसे खडे रहे और कहा, " महागय, तुम्हारे भाई इस देशमें आये और उन्होंने हमारे राजाको हटा दिया। उनके मौरूसी हकोंको जॉचनेके लिए तुमने अपने अधिकारियोंको तहसीलोंमे भेजा। कलमके शोशेसे मेरे काके तावेमे अनादि कालसे रहे गॉवॉको तथा आमदनीको तुम हडप गये! मैं लाचार चुप रहा, किन्तु अब तुम्हारे भाग्यने एकाएक पलटा खाया! जिस मुझे लूटकर बरबाद कर डाला उसीके द्वार खटखटाने की बारी तुम्हे आयी, फिरभी मैंने तुम्हारी रक्षा की । बस, अब मैं अपनी प्रजाका नेतृत्व करने लखनऊ जाकर तुम लोगोको भारतवर्षसे भगा देनेके कार्यमे अपना जीवन लगा दूँगा।"* ___ अवध प्रातके लोगोंने जो उदारता ऐसे समयमे दिखलायी वह किसी दुर्बलताके कारण न थी। ३१ मईसे जूनके पहले सप्ताह के अन्ततक समूचा अवध प्रात किसी प्रचड यत्रके समान सहसा जागरित हुआ था । अवधके सब जमींदार तथा राजा, ब्रिटिश पैटल सेना, रिसाले तथा तोपखानेके • सहस्रों सैनिक, नागरी महकमोंके सभी सेवक, किसान, ब्यापारी, विद्यार्थि हिंदु, मुसलमान सब देशको स्वतत्र करने के लिए एक प्राण होकर उठे। व्यक्तिगत बैर, वर्ण-जाति-धर्मके भेद सब कुछ एक देशप्रेममें गल गये ! हरएकको यह श्रद्धा थी, कि वह धर्म तथा न्यायके युद्धमे कूट पडा है। केवल १० दिनोंमें जनताने वाजिद अलीशाहको 'फिरसे सिहासनपर बिठाया । 'जनताके कल्याणके हेतु गजिद अलीको हमने पदच्युत किया

  • मॅलेसन कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड ३ पृ. २७३-माद टीका (फुट नोट)