पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२८७

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अध्याय ९ वॉ] २४५ [अवध चुनिदे गोरे सैनिकोकी एक पलटन, तोपखाना, तथा कडीसे कडी कसौटीपर जिनकी राजनिष्ठा (!) खरी उतरी थी ऐसे सिक्ख तथा हिंदुस्थानियोंकी दो पलटने थीं। इस लिए वह तो लडाईका मौका ढूँढ ही रहा था। __ सैनिक तथा अवधके नौजवान स्वयसैनिक लखनऊके आसपास जमा हो रहे थे। दोनों दल जानते थे, कि इस मुठभेडके पूर्व इसके बाद फिरसे टकराना पडेगा। कानपुरके घेरेकी लडाई अब टोंचपर पहुंच चुकी थी। ऐसे समयमे कानपुरके समाचारके बिना, अंग्रेज या क्रातिकारी चढाई करनेको राजी नहीं थे। २३ जूनको सर हेन्रीने लॉड कॅनिगको लिखा, "कानपुर यदि टिका रहे तो लखनऊ शायदही घेरा जायगा।” २८ जूनको लखनऊमे समाचार पहुंचा कि कानपुरमे एक भी अंग्रेज जीवित न रखा गया, इस सवादसे उत्साहित होकर क्रातिकारियोंने अंग्रेजोपर धावा बोलने के लिए चिनहटकी राह ली। कानपुरकी करारी तथा भयकर हारसे अग्रेजोंके रोबको हर जगह बडा धक्का पहुंचा। इससे सर हेन्रीने अपने मनमें ठान ली थी, कि इससे दुगनी करारी हार जब तक क्रातिकारियोंको न दी जाय, तब तक लखनऊकी रेसीडेन्सी तो क्या, कलकत्तेका फोर्ट विलियम भी असुरक्षित रहेगा! कानपुरका अपमान क्रातिरियों के खूनसे धो डालनेका निश्चय कर २९ जूनको अग्रेजी सेना लोहा-पुलके पास जमा हो गई। ४०० गोरे सैनिक, ४०० भारतद्रोही सिपाही और १० तोपोके साथ सर हेन्री लखनऊसे चल पडा। शूत्रुकी हलचल कहीं नजर न आनेसे वह दूरतक चलता ही गया। निदान, वह क्रातिकारियोंकी हरावलके सामने आ खडा हुआ। सर हेन्रीने अपने दाहिने पासेके एक महत्त्वपूर्ण देहातपर दखल करनेकी सिपाहियों को आज्ञा दी और उसके अनुसार वह गॉव हाथ आया, इधर गोरे सैनिकोंने बाएँ पासे के इस्माइलगजपर दखल कर लिया। तोपखानेके हिंदी और अग्रेज तोपचियोने कातिकारियोंपर गोलोकी बौछार इतनी जोरोंसे की, कि उनका तोपखानाः बंद पडा। उस दिन चिनहटमे गोरोंका पल्ला लगभग भारी रहा। किन्तु एकाएक क्रान्तिकारियोंने बाएँ पासके एक गॉवपर छुपा हमला करनेकी खबर आयी; अचानक अग्रेजोंपर