पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२९७

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अध्याय १० वॉ] २५५ [उपसंहार इस प्रलयंकारी भूकंपका अदाजा कलकत्ता और इंग्लैंड मी ठीक तरहसे न लगा सके ! वहॉकी सरकारके विचारमे तो मेरठवाले बलवेके पहले देशभरमे शान्तिका वातावरण था। मेरठ के उठनेपर तथा दिल्लीसे स्वतत्रताकी प्रकट घोषणा होनेपर भी इस भडाकेका अर्थ ही कलकत्तेवाले अग्रेजोंकी समझके बाहर रहा । १० मई से ३१ मई तक बलवेकी छोटी लहर भी न देखकर कलकत्तेके उस मतकी-भारतमें विशेष अगान्ति नहीं है-पुष्टीही हुई। २५ मईको गृहमंत्रीने प्रकट रूपसे कहा, 'कलकत्तेके केंद्रसे ३०० मीलोंके 6 यासार्द्ध में पूर्ण शान्ति बनी रही है। बीचमे भणिक तथा कहीं कहीं खतरेका रूप दीख पडता था वह अब नष्ट हो गया है। हमें दृढ विश्वास है, कि अब थोडेही समयमें पूर्ण गान्ति और सुरक्षाका साम्राज्य हो जायगा'। __वह थोडाही समय कब का लद गया था। ३१ मई की पहली किरणोंने भूमिको स्पर्श किया तब 'गान्ति और सुरक्षाका साम्राज्य ' सबदूर स्थापित हो चुका था। लखनऊकी रेसिडेन्सीके चौफेर, कानपुरके मैदानमे, झॉसीके जोगनबागमें, इलाहाबाद के बाजारमे, बनारसके घाटोंपर, सबठौर, " शान्ति और सुरक्षा' हीका साम्राज्य फैला हुआ था। तार टूटे हुए थे, पुल उडा दिये गये थे, रक्तकी नहरोंमें गोरोंकी लाशें बह चली थीं, फिरभी सर्वत्र शान्ति और सुरक्षाका राज था ! हॉ, तो तब जाकर कहीं कलकत्तेवालोकी ऑखे खुली! १२ जूनको , अंग्रेज नागरिक स्वयंसेवक दल खडे करने लगे । गोरे व्यापारी सौदागर, क्लर्क, लेखक, नागरी अधिकारी-मतलब हर एक गोरा बडी फुर्तीसे सेनामें अपना नाम लिखवाने लगे। इन सबको तुरन्त सामूहिक सचलन और रायफल चलाना सिखाया गया। यह काम इतनी फुर्ती तथा उत्साहसे पूरा किया गया, कि तीन सप्ताहोंमें इन नौसिखिये स्वयसेवकोकी एक स्वतंत्र पलटन बनी। इसमें रिसाला, पैदलसेना एव तोपखाना भी था। कलकत्तेकी रक्षा के लिए यह सेना पर्याप्त होनेका विश्वास हुआ, तब उसेही यह दायित्व "नयपुर तथा जोधपुर नरेशोंके सिपाहियोंने अपने राष्ट्र के लिए झुझनेवाले अपने भाइयोंपर हाथ उठानेसे साफ इनकार कर दिया, स्वयं अपने राजाके कहनेपर भी ! मॅलेसन कृत इंडियन म्यूटिनी खण्ड ३, पृ. १७२.