पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रस्फोट] २५६ [द्वितीय खड सौपा गया; और पेशावर तथा मॅजे हुए सैनिकोको उस स्थानमें भेजनेका अग्रेजोको अवकाग मिला, जहाँ क्रांतिका जोर वढा था। १३ जूनको लेजिस्लेटिव्ह कौन्सिलकी एक बैठक बुलाकर लॉर्ड कॅनिगने समाचारपत्रोके विरुद्ध एक निबंध (अॅक्ट) सम्मत करा लिया। क्यो कि, क्रातिका श्रीगणेशा होतेही बगालके सभी हिंदी समाचारपत्र क्रांतिकारियोमे सहानुभूति बताकर उन्हे प्रोत्साहित करनेवाले लेख लिखने लगे थे। रविवार दिनाक १४ जूनको 'शान्ति और सुरक्षाका' एक खासा हगामा कलकत्तेमे भी जारी था। उस दिनके सभी दृश्य हम एक अंग्रेज लेखककी । लेखनीद्वारा अच्छीतरह पाठकोंको दिखाना चाहते है। " सर्वत्र गडबडी, हो हल्ला, अशान्ति मची हुई थी। भयकर समाचार तो लगातार आ ही रहे थे। 'बारिकपुरकी सेना कलकत्तेपर आ रही है ! उपनगरोंकी जनता पहलेही बलवा कर चुकी है ! अवधके नवाब अपनी सेनाद्वारा 'गार्डनरीच'को लुटवा रहा है। ऐसी बातोपर तो हर किसीका विश्वास हो, गया था। बड़े अधिकारियोंहीन जनतामें घबराहट फैलाना प्रारम किया था। उनमें कौन्सिलके सदस्योके पास जाकर दौड धूप करनेवाले तथा अपनी पिस्तौलें 'भर'कर, दरवाजोके सामने ओटे बनाकर, सोफेपर सोनेवाले स्वय ' गवर्नमेंट सेक्रेटरी' थे। उसी तरह घरबार छोडकर बालबन्धोके साथ जहाजपर आसरा लेनेवाले कौन्सिलके सदस्य इनमे थे। उनसे नीची श्रेणीके कर्मचारी झुडके झुड, अपने 'बडों की करतूतसे आवश्यक सीख लेकर किलेकी तोपों की छायामे निर्भय बैठे रहनेके लिए अपनी घरकी सभी चीजें जमाकर, किलेके रास्ते चल पडे थे। भयकी कल्पनासे निर्मित क्रूर कसाइयोंकी कक्षासे दूर पहुँचानेके लिए इन कायरोंके लिए घोडे, गाडियों पालकिया, और अन्य सब प्रकारकी सवारियों मॅगवयी गयी थी। उपनिवेगोंमें तो ईसाई बस्तीका लगभग हर एक घर खाली हुआ था। पाच छः आदमी, जान हथेलीपर लेकर जो आ जाते, तो लगभग पीना शहर जलाकर भस्म कर दे सकते----!"* अंग्रेजोकी राजधानी में केवल अफवाहोंका बाजार गर्म होते ही इतनी

  • रेड पॅम्पलेट पृ. १०५