पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२९९

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अध्याय १० यो] - [उपमहार 'शान्ति और सुरक्षा बनी ही थी। मो. इस ना हगामेली जट वारकपुरणे सिपाहियो नया अवध नगरो नष्ट करनेका इगदा 'मरकार ने किया। गरकपुरक सिपाही १४ जनगे उठना है, यह नयाद देनेवाला पनि, उन्हीं सिपाहियोने, गोगमो मिला। तब बगियांने पहलेही नोयोग भय दिखाकर, उन्रे पक्टर उनने शव रखा लिय गय और १५ जना 'राजकी सुरक्षा हेतु' नवाबको उसय मत्रीच साथ गिरतार दिया गया तथा जनानेके नाथ नारे निवासस्थान नशीली गी। तलाशी में आपत्तिजनक क्ख भी न मिला, तो भी नवायी और उनके उन्नीर को अलकत्तेक मिलमे बट कर दिया गया। म तर टी चिनगारी पटने के अन मौरपर कलरनेम रचा हुआ ज्वालाग्राही कोतार धीरे धीरे खाली कर दिया गया। कलकत्तेके एक बगीचे के मामूली बम रहनेवाले बजार अली नकीम्बा ने अपने नवाबको अवधरे निंदामनपर फिरने प्रस्थापित करनेके उगने सब सिपाहियो तथा यगालभरमें कातिकारी सस्थाका नंगठन पिया था। किन्तु उर्माले पकडे जानेने, मानो, जातिका मस्तिक ही चू पडा । किलेमें बद रहते हए, एकबार कानिमारियों को भही गालियाँ देनेवाले अग्रेजोको उसने खरी मुनायी-'भारतभरमें भडकी हुई यह घनघोर ऋाति मेरे विचारमं पूरी तरह न्यायपूर्ण है! अवध हडप जानेग यह ठीक प्रतिशोध है। सत्य और न्यायक सीधे रास्ते चलनेके बढले नुम जानबूझकर स्वार्थ तथा झूठकी कटकपूर्ण पगडण्डी पर चले. फिर जत्र उन्ही कॉटोंसे तुम्हारे पॉव लहुलुहान हो जायें, तो इसमें अचरज क्या है ? प्रतिगोधके वीज बोते समय तुम हसते थे, फिर जब उन्हीं बीजोंमे, मौसम आतेही, कडुए फल लगे तो दूसरोंको कोसते और गालियाँ क्यों देते हो? हॉ तो, १८५७ के विप्लवक्र विस्तारके बारेमे त्वय कलकत्तेमे इस

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