पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३०१

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अध्याय १० वा] २५९ [उपसहार www.rrm vowwwimweader सिपाहीको फॉसीपर भी लटकाया गया। कानपुरकी इस 'अफवाह' की चर्चा जब लॉर्डस्में हो रही थी, तब उसका 'सत्य' रक्तकी लाल स्याहीसे, भयानक अक्षरों में लिखा जाकर एक महीना बीत चुका था! कानपुरकी 'गप' हॉकनेवाले सिपाहीको फॉसीपर लटकाकर इग्लैंड के राजनीतिज्ञ अभी आराम ही कर रहे थे, कि मूर्तिमान् सत्यही इग्लैडके किनारेपर उतरा! अंग्रेजी प्रतिष्ठापर पडे इस जोरदार चपतसे क्रोध, आवेग तथा बदलेके भावोंसे सारा इग्लैंड पागलपनके दौरेसे चकराने लगा। हडकाये कुत्तके समान समूचा इग्लैंड मागमें कुहराम मचाने लगा! और यह पागलपनका दौरा आजतक जारी है। आज भी अंग्रेजी इतिहासकार हर पक्तिमे लिखते आये है, कि क्रातिकारियोंने जो हत्यारे की, वह निस्सदेह पैशाचिक क्रूरता थी तथा मानवताके पवित्र नाममें उससे कालिख लगी है। और इस अंग्रेजी चिल्लाहट तथा कोलाहलसे सारे ससारके कान बधिर 'हो गये। १८५७ का केवल स्मरणही हर एकके रोएँ खडे कर देता है और लज्जासे अपनी गर्दन झुकानी पडती है ! सत्तावनके कातिवीरोंके नामोका उल्लेख भी, न केवल शत्रुओंके, दुनियाके अन्य लोगोंके, बल्कि इन हुतास्माओंने अपना रक्त जिनके लिए बहाया उन भारतीयोंके, मनमें भी घृणा और अनादर पैदा करता है। उन वीरोंके शत्रु तो उन्हे राक्षस, पिशाच, खूखार, नारकीय कीडे आदि विशेषण लगाते है । तटस्थ लोग उन्हे जगली, अमानुष, क्रूर, असभ्य कहते हैं, जहाँ भारतीय लोग उन वीरोंको स्वकीय कहते भी गरमाते है । और १८५७ के समय ही नहीं, 'आज भी वही स्थिति, वही पुकार जारी है। और इस अखण्ड आक्रोशसे ससारके कान इतने बधिर कर दिये हैं, कि सत्य की आवाज उनके कानोंमें जा ही नहीं सकती ! क्रातिकारी "शैतान ?,' नरपिशाच १ 'स्त्रीबाल घालक ? 'खूखार नारकीय कीडे ?' हायरे संसार ! यह भ्रम तेरे मनसे कब दूर होगा ? सत्य तू कब समझेगा? __ और यह सब क्यों ! ये गालिया किस लिए ? जानते हो ? स्वदेश और .

  • चार्लस् बॉल कृत इडियन म्यूटिनी