पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३०३

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अध्याय १० वॉ] [ उपसंहार अर्थमे उपयुक्त हो सकेगा। इसीसे, गत इतिहास या काति, रक्तपात, प्रतिगोध के कारण बने व्यक्ति के बारेमे किसी प्रकारका बयान करनेके पहले; उन वर्गों के बनावकी जड़में होनेवाली परिस्थितिकी बहुत बारीकीसे तथा सब पहलुओंसे जॉच करना आवश्यक है। काति, रक्तपात, बदला, अन्यायको जडसे उखाडकर सत्यधर्मका प्रारभ करनेके लिए प्रकृतिके बने हुए साधन हैं। और अपने उद्धारके लिए इस प्रकारके भयानक साधन प्रत्यक्ष न्यायदेवता ही जब बरतता हो, तब उसका दोष न्यायदेवतापर नही, वैसी परिस्थितिकी जडमे होनेवाले अन्यायपर ही लागू होता है। अन्यायके पीछे होनेवाली पीडक शक्ति तथा उद्दण्डता ही इन साधनोंके उपयोगको निमत्रण देती है। मृत्युदण्ड देनेवाले न्यायासनको कभी कोई खून बहानेका दोषी नहीं ठहराता! उलटे, फॉसीके फंदेमें लटकनेवाला अन्याय ही इस दोषका एकमेव स्वामी होता है। और इसी लिए ब्रूटसकी तलवार पवित्र ! इसीसे 'शिवाजीका बिछुवा वदनीय । इसी लिए इटलीकी क्रांतिमे बहा खून भी परम मगल ! इसी लिए विलियम टेलका तीर दैवी ! इसी लिए चार्लस् (१ म)का कल्ल न्यायपूर्ण कार्य ! साराशमे, पैशाचिक क्रूरताके पापका भार उन्हींके सिर रहेगा जिन्होंने अन्याय कर उस क्रूरताको छेडा । . और, ससारमें काति, रक्तपात तथा प्रतिशोधका भय न होता तो बेरोक लट खसोट तथा अत्याचारोंकी पाशविक धूमके नीचे यह पृथिवी दबोच जाती। आज या कल, जल्द या देरीसे, अन्यायका प्रतिशोध लेनेवाला शासक प्रकृतिही पैदा करेगी यह डर यदि अत्याचारी अन्यायको न होता, तो इस भूमण्डलपर जार जैसे तानाशाही और खूनी डाकुओंका दौरदौरा हो जाता। किन्तु हर हिरण्यकश्यपूको नरसिह, हर दुःशासनको उसका भीम, हर अत्याचारीको उसका शासक, हर सेरको सवासेर मिलता है, जिससे ससारको कुछ आशा है, कि अन्याय और अत्याचार सदा बने रह नहीं पायेंगे। इससे, प्रतिशोधका मतलब है, अन्यायको हटानेके लिए होनेवाली प्राकृतिक प्रतिक्रिया । और, तब, प्रतिगोधकी क्रूरताका पातक, मूल अन्यायी दुराचारीके सिर अवश्य उलट पडता है।