पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय १० वॉ1 २६५ [ उपसंहार इतिहासभी बडी लजाके साथ साख भरता है, कि इन अंग्रेज अधिकारियोंने गोरे सैनिकोंके कान, बटले की झूठी और भडकानेवाली बातें गढकर भर दिये, उनका नेतृत्व कर क्रातिकारियोंपर हमले किये, विद्रोही सिपाहियोके यौद्धिक दॉवपेचोंका गुप्त रहस्य गोरे सैनिकोंको बता दिया और जिस भोली देहाती जनताने उनके प्राण बचाये थे उन्हीकी क्रूर हत्या की इस तरह उपकारका बदला चुकाया ! यह अचरज नहीं, सचमुच, अचरजकी चरम सीमा है, कि इस भयकर कृतघ्नताके प्रदर्शनसेभी हिदी लोगोंने अपने मनकी अभिजात उदारताको रंच भी डिगने न दिया ! पीछा किये जानेवाले तथा जान बचाने के लिए सिरपर पॉव रखकर भागनेवाले कई गोरोंके प्राण किसानोंकी झोपडियोंने सुरक्षित रखे थे, और देहाती औरतोंने अनगिनत गोरे बच्चो और गोरी स्त्रियोको अपने हाथो काले रगमें रगाकर तथा हिंदी वेश पहनाकर दयाभावसे अपने घरमे छिपा रखा था। दिनरात भागनेके कष्टसे विकल, मार्गके छोरपर पडे कई नौसिखिए कम उम्र अंग्रेज अधिकारियों, तथा मामूली सोल्जरोंकोभी, ब्राह्मणोंने बारबार अपने हाथो दूध पिलाकर पुनर्जन्म प्राप्त कर दिया । श्री. फॉरेस्ट लिखित स्टेट पेपर्स पढनेसे मालम होगा कि, अंग्रेजोंकी खूनी कटार जिस अवधकी छातीमे गहरी घोप दी गयी थी, उसी अवधके बाशिंदे, हैरान होकर तितर-बितर भागनेवाले अग्रेजोंसे असाधारण उदारतासे, पेश आये! बारबार और जगह जगह ऐसे घोषणापत्र प्रकट कर,-कि 'औरतों और बच्चोंकी हत्यासे अपने पवित्र कार्यमें बाधा पडेगी तथा अपजग मिलेगा'- क्रांतिनेताओंने अपने अनुयायियोंको जताया था या नहीं ? नीमच और नसीराबाटके विद्रोहियोने तो गोरोंको जीवित जाने दिया। एक बार कुछ गोरे जान बचानेको भाग रहे थे, देहाती उन्हें देखकर चिल्लाने लगे 'मारो 'फिरगीको, मारो फिरंगीको' । वहाँ एक परिवारने यह कहकर उनकी रक्षा की ये निर्दयी नीच अवश्य हैं, किन्तु अभी उन्होने एक राजपूतका अन्न खाया है, अब उन्हें मार नहीं सकते । * जो भारतीय मानव स्वभावसे इतना दयालु तथा उदारमना होता है,,

  • चार्लम् बॉल कृत इडियन म्यूटिनी खण्ड १