पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३०९

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अध्याय १० वॉ] २६७ [ उपसंहार सूअरकी खालमे डालकर दम घुटानेका खेल खेलनेवाला 'इग्लैड ?* या, ऐसे अन्य अक्षम्य अपराध तथा अत्याचार, बागियोके न्याय्य ' प्रतिशोध' के नामपर सराहनेकी निर्लजता जिसने दिखायी वह इग्लैड ? कहते हैं ' न्याय्य प्रतिशोध ! प्रतिशोध ? किसका ? सौ सालोंतक अन्यायपूर्ण शोषणकी चक्कीमे पिसकर अपने देशका सर्वनाश होनेसे प्रक्षुब्ध बने 'प्रतिशोधकी प्रतिज्ञा करनेवाले 'पाडे' लोगोका ? या जिन्होने इस भीषण चक्कीमें गति दी उन फिरगियोका १ स्वदेशकी यत्रणाओंको देख एकाध व्यक्ति या एकाध विशेष वर्गको तीव्र विषाद महसूस हो रहा था, सो बात नहीं है। हिदु मुसलमान, ब्राह्मण शूद्र, क्षत्रिय वैश्य, राजा रक, स्त्रीपुरुष, पण्डित मौलवी, सैनिक, पुलीस-इन भिन्न भिन्न धर्म, भिन्न भिन्न पथ और कई भिन्न व्यवसायोंके, लोगोंने स्वदेशका बरा हाल सहते रहना असम्भव हो जानेसे सब मिलकर, अकल्पनीय थोडे अवसर में, भयानक प्रतिशोधका बवडर खडा किया। इतना राष्ट्रव्यापी था वह आदोलन ! इस एकही बातसे मालम होगा, कि जिस पराकाष्ठाको जुल्म पहुँच गया था, उसी पराकाष्ठाको अपने प्रतिकारको पहुँचानेका जतन किया गया था। विदेशी शासन की छावमें व्यक्तिगत रूपसे मोटा ताजा बना सरकारी कर्मचारियो का वर्ग भी उस समय शासकों की ओर न रहा था। एक अंग्रेज लेखक लिखता है:-सरकारी नौकरोंम होनेवाले फतूरियों की तालिका बनाने बैठे तो शायद विद्रोही प्रातोंके सभी कर्मचारियोंके नाम दर्ज करने पड़ेंगे। इसतरह क्रातिकी आग चहें ओर फैली थी! उस समय यदि किसीको गाली देनी हो तो उसे जिभक्त,' या ' राजनिष्ठा' के आधार पर जो नौकरी पाते थे उन्हे 'म्वधर्म द्रोही' 'स्वटेश द्रोही' माना जाता था! जो सरकारी नौकरीमें टिके रहते उन्हें जातिसे बाहर कर दिया जाता। उनसे 'रोटीवेटी' व्यवहार कोई न करता। ब्राह्मण उनके घर पूजापाठ करनेसे इनकार करते। यहॉतक कि उनका चितामें अग्निसस्कार करनेसे मी इनकार किया जाता। विदेशियों-फिरगियों की सेवा करना मातृहत्यासे

  • रसेलकी डायरी