पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३१

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ज्वालामुखी

हिंदुस्थान का जागरित ज्वालामुखी अव भडकने लगा है। तप्तरस के डरावने सोते अब उस के अदर मे खौलने लगे हैं। स्फोटक रसायन का भीषण मिश्रण घोटा जा रहा है और स्वातंत्र्यप्रेम का स्फुल्लिंग उस पर गिर रहा है। अत्याचारी शासन! अव तक अवसर हाथ से नहीं गया; अभी सोच लो। जिस में जरा भी टालमटूल किया तो अद्भुत और पीडक शासन को ज्वालामुखी के समान धधकते प्रतिशोध का परिचय प्रस्फोट की प्रचंडता ही से होगा, जिस में संदेह नहीं!

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