पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३१०

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प्रस्फोट] २६८ [द्वितीय खंड ture अधिक पाप माना जाता। इसतरह समाजके हर स्तरमें बवडर आ गया था; प्रचंड खलबली मच गई थी ! जुल्म और अन्यायकी पराकाष्ठा ही का यह चिन्ह नहीं था? इस प्रकार, ऊपरसे शान्त टीखनेवाला यह ज्वालामुखी पेटमें खोलकर धडाका होनेकी विदुतक आ पहुंचा था । क्राति का सदेसा पहुँचानेवाली चपातियाँ आकाशमार्गसे सचार कर, थोडेही समयमे शुरू होनेवाले महासमारोहमे क्रियात्मक सहायता देनेके लिए हर एक को निमत्रण दे रही थीं। और इस आवाहनका सम्मान कर परम पवित्र साधनाकी सिद्धि के लिए दयोंदिशाओसे युद्धदेवताओं का झुण्ड वेगसे भारतमें आ रहा था। इस महा-समारोह के लिए आवश्यक सभी बाजे, मारुबाजे, युद्धघोष, वीरगर्जना सब कुछ मडपमे व्यवस्थासे सुशोभित था । ज्वालामुखीकी सतह पर जुल्म और अन्याय निर्भीक गर्व के साथ अकडते हुए घूम रहे हैं। पहाइकी सतह मुलायम हरियालीसे हॅकी हुई होनसे कितनी भी शान्त और मनोहारी मालम होती हो, उसके उदरमे क्या ही प्रचण्ड खलबलीउथलपुथल हो रही है ! सावधान ! वह शुभ महूरत अब आ लगा है। एक क्षण की देर है-फिर बिजलीकी कडक तथा ज्वालाओंकी लपटों एवं उल्कापात से सारा वायुमडल कौध उठेगा। देखो, देखो, आगके स्तभ के स्तंभ ऊपर उफान रहे है । रक्तधाराकी मूसलाधार वर्षा पृथ्वीपर हो रही है! आत चीत्कारोकी ध्वनिमे तलवारोंकी खनखनाहट मिली हुई है ! भूत-प्रेत नाच रहे हैं। वीर सिंहनाद कर रहे है ! ठढी हरियालीसे ढंकी

  • (सं. ३८) विद्रोहके परिणामस्वरूप लगभग हर एक का व्यक्तिगत स्वार्थ और पहले स्वामीके लिए प्रेम साफ बह गया था। ऐसी हालतमें सरकारसे वफादार रहना कैसे कोई सह सके ? सब जानते हैं कि हमारी नौकरीमे जो कुछ थोडे सिपाही रहे उन्हे जातिसे बहिष्कृत माना जाता-केवल भाईबढोद्वारा नहीं, उनकी सारी जातिसे । वे कहते है कि वे अपने वर जानकी हिम्मत नहीं कर पाते, क्यों कि उनकी निंदा ही नहीं होगी तथा भाईचाराही नहीं रहेगा; बल्कि उन्हे जानका खतरा रहेगा -रेवरड केनेडी पृ. ४३