पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३१५

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PR00000000000000000000000770042 LIJLI अनिमल य 409887१११११११११११RY ११ 534560 4880888888888888050descoo88888&caBSODOORSC000000000000poorse ।०८ " १८५७ में भारतमाता, सचमुच, क्रोधाग्नि से जल झुठी और सारे संसार के कानफाइनेवाला भयानक धमाका हुआ ! जिस तरह अग्निबाण आकाश में पका जाता है; अस का विरफोट हो जाता है; अस से रंगविरंगी तेजाकृतियाँ बाहर फेकी जाती है; असी तरह क्रांति के अिस ग्निबाण से तप्त लहू, शस्त्रास्त्र और भिडन्हें बाहर अडीं। कितना विशाल यह अग्निवाण ! मेरठ से विंध्याचल तक लम्बा और पेशावर से डमइम तक चौडा ! देखो असे सुलगा कर छोडा गया ! आग की लपटों ने समस्त दिशा व्याप्त कर दी । हजारों वीर झूझते हैं; गिरते है; शान्त हो जाते है । हर रथान में युद्ध और प्रलय ! सचमुच ज्वालामुखी का भयंकर प्रलय !!" ___--और वावा गंगादास की झोपड़ी के पास धधकती झॉसीवाली लक्ष्मी की वह चित्ता ! १८५७ के स्वातंत्र्यसमर के ज्वालामुखी के प्रलय की यह अन्तिम ज्वाला!! र.११.११११.०१.११.१११११११११११११ CURSassessbusesassbsesasesSSSS888888Assosissdesistak