पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३१७

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- TELLITE Dayaनल N/ खण्ड तीसरा अग्निप्रलय अध्याय १ ला दिल्ली का संग्राम दिनांक ११ ममी को दिलीने स्वाधीन होने की घोषणा की; और जिस साहसपूर्ण चाल से जो प्रचण्ड तूफान अठा असे सॅवार कर सुगठित क्राति का रूप देने में वह अलझी रही । मुगलों के पुराने सिंहासन पर बादशाह को बिठा कर, जनता ने जैसा बलवान केन्द्र निर्माण किया जिस की शुज्ज्वल औतिहासिक परपरा के कारण ही स्वाधीनता का आदोलन तूल पकड सकता था। किन्तु, बूढे बहादुरशाह को सिंहासनपर बिठाने का रहस्य न भूलना चाहिये । बहादुरशाह को बादशाह बनाने का मतलब यह नहीं था, कि मुगलों की पुरानी सत्ता, पुरानी प्रतिष्ठा, पुरानी परंपरा का असे अत्तराधिकारी बनाया गया। नहीं, बहादुरशाह को भारत का सम्राट बनाया गया-मुगल सम्राट नहीं। क्यों कि मुगल शासकों को जनताने भारतीय जनताने-अपनी अिच्छा - से नहीं चुना था। मुगल राज भारत पर केवल बलपूर्वक बिठाया गया था, उसे विजय के नाम से सम्मानित किया गया, और विदेशी साहसिको